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________________ उवसमसेढीए णसयवेदगस्स णाणत्तपरूवणा उसामिदा भवंति । ताधे चेव चरिमसमए सवेदो भवदि, तदो अवेदो सत्त कम्माणि उवसामेदि, तल्ला च सत्तण्हं पि कम्माणं उवसामणा। ____ २७६. पुरिसवेदेणोवहिदो पुव्वमेव गसयवेदमुवसामिय तदो अंतोमुहुत्तेणिस्थिवेदमुवसामेदि । एदस्स पुण अंतरकदमेत्ते चेव णवंसयवेदस्स पढमहिदि णवुसयइथिवेदोवसामणद्धामेत्तिं द्ववेयूण पुव्वमेव णqसयवेदोवसामणमाढविय उवसामेमाणस्स जद्देही पुरिसवेदेणोवढिदस्स णवुसयवेदोवसामणद्धा तद्देही अद्धा गदा तो वि णवुसयवेदोवसामणा ण समप्पदि । तदो इत्थिवेदोवसामणं पि तत्थाढविय दो वि उवसामेमाणस्स अप्पणो पढमहिदीए चरिमसमए जम्मि इत्थिवेदोवसामणद्धा पुण्णा तम्हि णवुसयवेदो इत्थिवेदो च दो वि जुगवमुवसामिदा भवंति ति । एदमेगं णाणत्तं । अवगदवेदो च संतो तत्तोप्पहुडि सत्तणोकसाये उवसामेदि । सरसी च सत्तण्हं पि कम्माणमुवसामणद्धा त्ति । एदं विदियं णाणत्तं । एवमेदाणि दोणि णाणत्ताणि णसयवेदोदएण उवद्विदस्स उवसामगस्स होति त्ति सुत्तत्थसंगहो। संपहि एदं चेवत्थमुवसंहरेमाणो सुत्तरमुत्तरं मणइ ___ * एदं णाणत्तं गबुसयवेदेण उवहिवस्स। सेसा वियप्पा ते चेव कायव्वा । स्त्रीवेदके उपशामना कालके पूरा होनेपर स्त्रीवेद और नपुंसकवेद उपशमित हो जाते हैं । तथा उसी अन्तिम समयमें सवेदी होता है, तत्पश्चात् अवेदी होकर सात कर्मोंको उपशमाता है । सात कर्मोंका उपशामना काल समान है। २७६. पुरुषवेदके साथ श्रोणिपर चढ़ा हुआ जीव पहले ही नपुंसकवेदको उपशमा कर तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्त काल द्वारा स्त्रीवेदको उपशमाता है। परन्तु यह अर्थात् नपुंसकवेदी जीव अन्तर किये जानेको मर्यादा करके नपुंसकवेद और स्त्रीवेदके उपशामना कालप्रमाण नपुंसकवेदकी प्रथम स्थितिको स्थापित करता है जो प्रथम स्थिति, जो पहले ही नपुंसकवेदकी उपशामनाका आरम्भ कर उसकी उपशामना कर रहा है ऐसे पुरुषवेदसे श्रेणिपर चढ़े हुए जीवके जितना आयामवाला नपुंसकवेदका उपशामना काल है उतना आयामवाले कालके बराबर है, वह काल यद्यपि व्यतीत हो गया है तो भी नपूंसकवेदकी उपशामना समाप्त नहीं होती है। तत्पश्चात् वहाँपर स्त्रीवेदकी उपशामनाको भी आरम्भ करके स्त्रीवेद और नपुंसकवेद दोनोंकी ही उपशामना करनेवाले जीवके अपनी (स्त्रीवेदसम्बन्धी) प्रथम स्थितिके अन्तिम समयमें जिसमें कि स्त्रीवेदका उपशामना काल पूर्ण होता है-उसमें 'नपुंसकवेद और स्त्रीवेद दोनों ही एक साथ उपशमित होते हैं। यह एक नानापन है। और अवगतवेदी होकर वहांसे लेकर सात नोकषायोंको उपशमाता है । सात नोकषायोंका उपशामना काल समान है। यह दूसरा नानापन है । इस प्रकार नपुंसकवेदसे श्रेणिपर चढ़कर उपशामना करनेवालेके ये दो नानापन होते हैं-यहइ स सूत्रका समुच्चयरूप अर्थ है। अब इसी अर्थका उपसंहार करते हुए आगेके सूत्रको कहते हैं * नपुंसकवेदसे श्रेणिपर चढ़े हुए जीवकी अपेक्षा यह नानापन है। शेष विकल्प वे ही (पुरुषवेदके समान ही) कहने चाहिये ।
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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