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________________ ११८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे * एदं णाणत्तं, सेसा सव्वे वियप्पा पुरिसवेदेण सह सरिसा। २७३. एत्तियमेत्तो चेव एत्थतणो विसेसो। एत्तो उवरिमा सव्वे वियप्पा जहा पुरिसवेदस्स चदुहिं कसाएहिं सह भणिदा तहा णिरवसेसा वत्तव्वा त्ति एसो एत्थ सुत्तत्थविणिच्छओ। एत्थ ओदरमाणावत्थाए वि थोवयरविसेससंभवो अस्थि सो जाणिय वत्तव्यो। संपहि णवुसयबेदोदएण चडिदस्स णाणत्तपदंसणट्ठमुवरिमं सुत्तपबंधमाह * णवंसयवेदेणोवहिवस्स उवसामगस्स णाणत्तं वत्तहस्सामो। $ २७४. सुगमं । * तं जहा। ६ २७५. सुगमं । * अंतरदुसमयकदे णqसयवेदमुवसामेदि, जा पुरिसवेदेण उवट्टिदस्स णवंसयवेदस्स उवसामणद्धा तद्दे ही अद्धा गदा ण ताव गर्बुसयवेदमुवसामेदि, तदो इत्थिवेदमुवसामेदि, णवंसयवेदं पि उवसामेदि चेव, तदो इत्थिवेदस्स उवसामणद्धाए पुण्णाए इत्थिवेदो च णqसयवेवो च * प्रकृतमें यह नानापन है । शेष सब विकल्प पुरुषवेदके साथ समान हैं। ६ २७३. यहाँपर इतना ही विशेष है। उक्त विकल्पसे ऊपरके सभी विकल्प जिस प्रकार पुरुषवेदीके चार कषायोंके साथ कहे हैं उसी प्रकार विशेषता किये बिना कहने चाहिये इस प्रकार यहाँपर यह सूत्रसम्बन्धी अर्थका निर्णय है। यहाँपर उतरनेरूप अवस्थामें थोड़ा-सा विशेष सम्भव है सो उसे जानकर कहना चाहिये । तात्पर्य यह है कि यह जीव श्रेणिसे उतरते समय अवेदी रहकर ही सात नोकषायोंको अनुपशमित करता है। इतना मात्र यहाँ भेद है। अब नपुंसकवेदके उदयके साथ श्रेणिपर चढ़े हुए जीवके नानापनको दिखलानेके लिये आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं * नपुंसकवेदके साथ श्रेणिपर चढ़े हुए उपशामकके नानापनको बतलाते हैं। ६ २७४: यह सूत्र सुगम है। * वह जैसे। 5२७५. यह सूत्र सुगम है। * अन्तर करनेके बाद दूसरे समयमें नपुंसकवेदको उपशमाता है। जो पुरुषवेदके साथ श्रेणिपर चढ़े हुए जीवका उपशामना काल है उतने आयामवाला उपशामना काल जब तक व्यतीत नहीं होता तबतक नपुंसकवेदको नहीं उपशमाता है । तत्पश्चात् स्त्रीवेदको उपशमाता है, नपुंसकवेदको भी उपशमाता ही है। इसलिये १. ताप्रती एत्तियमेत्तो इत्यतः विसेसो इति यावत् सूत्रांशरूपेणोपलभ्यते ।
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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