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________________ उवसमसेढीए लोभवेदगस्स णाणत्तपरूवणा ११५ पढमट्ठिदी जादा त्तिणासंका एत्थ कायत्र्वा, एदिस्से चैव पढमट्ठिदीए अन्यंतरे अणियकिरण विसयासेसवावारविसेसमणुणालेंतस्स एवंविहाए पढमट्ठिदीए अवस्स संभाविदत्तादो । एत्तियं चेव चढमाणस्स णाणत्तं । एतो उवरि सुहुमलोभं वेदेंतस्स णत्थि किंचि णाणत्तमिदि पदुपायणट्टमुत्तरसुत्तावयारो * सुहुमसांपराइयं पडिवण्णस्स णत्थि णाणत्तं । $ २६२. सुगमं । संपहि एदस्सेव पुणो परिवदमाणावत्थाए णाणत्तगवेसणट्ठमुत्तरो सुत्तपबंधो— * तस्सेव पडिवदमाणगस्स सुहुमसांपराइयं वेदंतस्स णत्थि णाणत्तं । $ २६३. गयत्थमेदं सुत्तं । * पढमसमयबादरसपिराइयप्पहुडि णाणत्तं वत्तइस्लामो । $ २६४. बादरसां पराइयपविट्ठपढमसमयप्पहुडि णाणत्त मंत्थि तमिदाणिं वत्तसामोति वृत्तं होइ । * तं जहा । $ २६५. सुगमं । * तिविहस्स लोहस्स गुणसेढिणिक्खेवो इदरेहिं कम्मेहिं सरिसो · शंका- इतनी बड़ी आयामवाली लोभकी प्रथम स्थिति किस कारणसे हो जाती है ? समाधान - यह आशंका यहाँ नहीं करनी चाहिये, क्योंकि इसी प्रथम स्थितिके भीतर अनिवृत्तिविषयक समस्त व्यापार विशेषको करनेवालेके इस प्रकारकी प्रथम स्थितिका होना अवश्यम्भावी है । चढ़नेवाले इसके इतना ही नानापन है। इससे ऊपर सूक्ष्म लोभका वेदन करनेवालेके 'कुछ भी नानापन नहीं है इस बातका कथन करनेके लिये आगेके सूत्रका अवतार हुआ है* सूक्ष्मसाम्परायको प्राप्त हुए जीवके नानापन नहीं है । $ २६२. यह सूत्र सुगम है। अब इसीके पुनः गिरनेकी अवस्थामें नानापनका अनुसन्धान करनेके लिये आगेका सूत्रप्रबन्ध आया है । * गिरते समय सूक्ष्मसाम्परायको वेदन करनेवाले उसीके नानापन नहीं है । $ २६३. यह सूत्र गतार्थ है । * अब बादरसाम्परायके प्रथम समयसे लेकर नानापनको बतलाते हैं । $ २६४. जो बादर साम्पराय में प्रविष्ट हुआ है उसके प्रथम समयसे लेकर नानापन है उसे इस समय बतलाते हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है । * वह जैसे । $ २६५. यह सूत्र सुगम है । * उसके तीन प्रकारके लोभोंका गुणश्रेणिनिक्षेप इतर कर्मोंके समान है ।
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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