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________________ १.८ अयधवलासहिदे कसायपाहुडे * तं जहा। २४२. सुगम । है। इस प्रकार इस कालको ध्यानमें रखकर विचार करनेपर जिस नानापनकी यहाँपर प्ररूपणा की जा रही है वह समझमें आ जाती है। उदाहरणार्थ-क्रोधके उदयसे श्रेणिपर चढ़े हुए जीवके जितना क्रोधका वेदनकाल और इसके बाद जितना मानका बेदनकाल है इन दोनोंको मिलाकर जितना काल होता है वह सब मानके उदयसे श्रेणिपर चढ़े हुए जीवका मानका गेदनकाल हो जाता है, इसलिए सिद्ध हुआ कि क्रोधके उदयसे जो श्रेणिपर चढ़ता है वह अपने उदयकालमें जिन प्रकृतियोंकी उपशमना करता है, मानके उदयसे जो श्रेणिपर चढता है वह भी उन प्रकृतियोंका मानके उदयकालमें जि क्रोधका वेदनकाल बतला आये हैं उतने ही कालके द्वारा उपशमना करता है। इस प्रकार मानके उदयसे श्रेणिपर चढ़े हुए जीवके उन प्रकृतियोंकी उपशामना क्रोधके उदयकालमें न होकर मानके उदयकालमें हुई यह नानापन अर्थात् भेद यहां प्राप्त हो जाता है। इसी उदाहरणको ध्यानमें रखकर श्रेणिपर चढ़नेकी अपेक्षा और श्रेणिसे उतरनेकी अपेक्षा सर्वत्र विचार कर लेना चाहिये जिसका आगे चूर्णिसूत्रों और उसकी टीका द्वारा विचार किया जा रहा है। उपशमश्रेणिपर चढ़नेकी अपेक्षा अनिवृत्तिकरणमेंक्रोधसे श्रेच० क्रोध मान माया लोभ उपशमाई गई। क्रोधवेदनकाल | मानवेदनकाल ! मायावेदनकाल | लोभवेदनकाल प्रकृतियां नो नोकषाय,तीन क्रोध तीन मान | तीन माया तीन लोभ मानसे श्रे०० मानवेदककाल मायावेदनकाल | लोभवेदककाल उपशमाई गई नौ नोकषाय, प्रकृतियाँ तीन माया तीन मान तीन क्रोध तीन लोभ मायासे श्रे० च. मायावेदककाल लोभ उपशमाई गई नौ नोकषाय, प्रकृतियों तीन क्रोध तीन मान तीन माया तीन लोभ लोभसे श्रे० ० लोभवेदककाल उपशमाई गई । नौ नोकषाय, तीन क्रोध तीन मान तीन माया तीन लोभ प्रकृतियां इस संदृष्टिसे यह स्पष्ट हो जाता है कि क्रोध, मान, माया और लोभके उदयसे श्रेणिपर चढ़े हुए जीवके इनमेंसे किस कषायके उदयमें कब किन प्रकृतियोंकी उपशामना होती है । उतरनेकी अपेक्षा भी इसी न्यायसे विचार कर लेना चाहिये। *वह जैसे। ६२४२. यह सूत्र सुगम है।
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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