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पडिवदमाण उवसामगस्स परूवणा
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पमत्तापमत्तगुणट्ठाणेसु अच्छमाणो अवट्ठिदायामं चैव गुणसेढिणिक्खेवं कुणइ । संजमासंजमं परिवज्जमाणो संखेज्जगुणवड्ढीए वड्ढियूण गुणसेढिणिक्खेवं णिक्खिबदि । अधाणियट्टिदूण पुणो वि समयाविरोहेण उवसमसेटिं खवगसेटिं वा चदि तो पुम्बिन्लगुणसेढिसीसयादो हेट्ठा संखेज्जगुणहाणीए हाइदूण गुणसेढिणिक्खेवमेसो करेदिति । एदं च सव्वं गुणसेढिणिक्खेवस्सायामं पहुच्च भणिदं । पदेसग्गं पेक्खियण पुण वड्ढि हाणिअवट्ठाणाणं विसयविभागो जाणिय जोजेयव्वो, अंतोमुहुत्तकालमेयंतेण परिहाइदूण तत्तो परं सत्थाणसंजदभावे वट्टमाणस्स संकिलेस - विसोहिवसेण वड्टिहाणि - अवट्ठाणाणं संभवं पडि विप्पडिसेहाभावादो ।
भाग-14
* पढमसमयअधापवत्तकरणे गुणसंकमो वोच्छिण्णो । सव्वकम्माणमधापवत्तसंकमो जादो । णवरि जेसिं विज्भावसंकमो अत्थि तेसिं विज्भादसंकमो चेव ।
$ २१७. जेसिं बंधो अत्थि तेसिमधापवत्तसंकमो, जेसिं बंघो णत्थि णव सयवेदादीणमप्पसत्थकम्माणं तेसिं विज्झादसंकमो एत्तो पाए पयट्टदि ति एसो एत्थ मुत्थसन्भावो |
* उवसामगस्स पढमसमयअपुव्वकरणप्पहुडि जाव पडिवदमाणगस्स चरिमसमयअपुव्वकरणो त्ति, तदो एत्तो संखेज्जगुणं कालं पडि
स्वस्थान संयत होकर प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानोंमें परिवर्तन करते हुए अवस्थित आयामवाले गुणश्र णिनिक्षेपको ही करता है । संयमासंयमको प्राप्त होता हुआ संख्यात गुणवृद्धिरूप वृद्धि करके गुणश्र णिनिक्षेपका निक्षेपण करता है। नीचे न गिरकर फिर भी आगमानुसार उपशमश्रेणि अथवा क्षपकश्रेणिपर चढ़ता हैं तो पहलेके गुणश्र णिशीर्षसे नीचे संख्यात गुणहानिरूपसे घटाकर यह जीव गुणश्र णिनिक्षेपको करता है। यह सब गुणश्र णिनिक्षेपके आयामको अपेक्षा कहा है । प्रदेशपुंजको अपेक्षा तो वृद्धि, हानि और अवस्थानके विषय विभागकी जानकर योजना करनी चाहिये, क्योंकि अन्तर्मुहूर्त कालतक एकान्तसे घटाकर उसके बाद स्वस्थान संयतरूपसे विद्यमान हुए जीवके संक्लेश और विशुद्धिके कारण वृद्धि, हानि और अवस्थान होनेके प्रति कोई निषेध नहीं है ।
* अधःप्रवृत्तकरण के प्रथम समयमें गुणसंक्रम विच्छिन्न होकर सब कर्मोंका अतःप्रवृत्तसंक्रम होने लगता है । इतनी विशेषता है कि जिनका विध्यातसंक्रम होता है उनका विध्यातसंक्रम ही होता है ।
$ २१७. जिन कर्मोंका बन्ध होता है उनका अधःप्रवृत्त संक्रम होता है और जिन नपुंसकवेद आदि अप्रशस्त कर्मोंका बन्ध नहीं होता उनका यहाँसे लेकर विध्यातसंक्रम प्रवृत्त होता है यह यहाँ इस सूत्र का अर्थ है ।
* चढ़नेवाले उपशामकके प्रथम समयसे लेकर गिरनेवाले उसीके अपूर्व करण के अन्तिम समय तक जो कालका योग होता है उससे संख्यातगुणे कालतक लौटा हुआ
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