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________________ ९२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे * से काले अपुव्वकरणं पविट्ठो । $ २०५. सुगमं । * ताधे चेव अप्पसत्थउवसामणाकरणं णिधत्तीकरणं णिकाचणाकरणं च उग्घाडिदाडि । ९ २०६. कुदो ! एदेसिं करणाणमणिय किरणपाहम्मेण पुव्वमुवसंतभावेण परिणदाण मेहिमपुव्वकरणपवेसाणंतरमेव पुणरुब्भवे पडिबंधाभावादो ।' * ताधे चेव मोहणोयस्स णवविहबंधगो जादो । $ २०७. कुदो १ हस्सरदिभयदुगु छाणमेत्थ परिणामविसेसमस्सियूण बंधसत्तीए पुणरुम्भवदंसणादो । * ताधे चेव हस्सरविअरदिसोगाणमेक्कदरस्स संघादस्स य उदीरगो सिया भयदुगंछाणमुदीरगो । $ २०८. छण्हमेदेसिं णोकसायाणमुदयपरिणामो समयाविरोहेणेत्थ पुणो वि पत्तो त्ति वृत्तं होइ । सुगममण्णं । * तदो अपुव्वकरद्धाए संखेज्जदिभागे गदे तदो परभवियणामाणं बंधगो जादो । * तदनन्तर समयमें यह जीव अपूर्वकरण में प्रविष्ट होता है । २०५. यह सूत्र सुगम हैं । * उसी समय अप्रशस्त उपशामनाकरण, निघत्तीकरण और निकाचना करण पुनः प्रारम्भ हो जाते हैं । $ २०६. क्योंकि अनिवृत्तिकरणके माहात्म्यवश पहले उपशान्त भावसे परिणत हुए इन करणोंकी इस समय अपूर्वकरणमें प्रवेश करनेके समय ही पुनः उत्पत्ति होनेमें प्रतिबन्धका अभाव है । * उसी समय नौ प्रकारके मोहनीय कर्मका बन्धक हो जाता है । $ २०७. क्योंकि परिणाम विशेषका आश्रय करके हास्य, रति, भय और जुगुप्साकी यहाँपर बन्धशक्तिकी पुनः उत्पत्ति देखी जाती है । * उसी समय हास्य-रति तथा अरति शोक इनमें से किसी एक युगलका उदीरक होता है तथा भय और जुगुप्सा इनमेंसे किसी एकका या दोनोंका कदाचित् उदीरक होता है । $ २०८. इन छह नोकषायोंका उदयपरिणाम समयके अविरोधपूर्वक यहाँ पुनः प्रवृत्त हुआ यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अन्य कथन सुगम है । * तत्पश्चाद् अपूर्वकरणके संख्यातवें भागके व्यतीत होनेपर वहाँसे परभवसम्बन्धी नामकर्मकी प्रकृतियोंका बन्धक होता है । १. ता० प्रती पडिबंधभावादो इति पाठः ।
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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