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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
* से काले अपुव्वकरणं पविट्ठो । $ २०५. सुगमं ।
* ताधे चेव अप्पसत्थउवसामणाकरणं णिधत्तीकरणं णिकाचणाकरणं च उग्घाडिदाडि ।
९ २०६. कुदो ! एदेसिं करणाणमणिय किरणपाहम्मेण पुव्वमुवसंतभावेण परिणदाण मेहिमपुव्वकरणपवेसाणंतरमेव पुणरुब्भवे पडिबंधाभावादो ।'
* ताधे चेव मोहणोयस्स णवविहबंधगो जादो ।
$ २०७. कुदो १ हस्सरदिभयदुगु छाणमेत्थ परिणामविसेसमस्सियूण बंधसत्तीए पुणरुम्भवदंसणादो ।
* ताधे चेव हस्सरविअरदिसोगाणमेक्कदरस्स संघादस्स य उदीरगो सिया भयदुगंछाणमुदीरगो ।
$ २०८. छण्हमेदेसिं णोकसायाणमुदयपरिणामो समयाविरोहेणेत्थ पुणो वि पत्तो त्ति वृत्तं होइ । सुगममण्णं ।
* तदो अपुव्वकरद्धाए संखेज्जदिभागे गदे तदो परभवियणामाणं बंधगो जादो ।
* तदनन्तर समयमें यह जीव अपूर्वकरण में प्रविष्ट होता है ।
२०५. यह सूत्र सुगम हैं ।
* उसी समय अप्रशस्त उपशामनाकरण, निघत्तीकरण और निकाचना करण पुनः प्रारम्भ हो जाते हैं ।
$ २०६. क्योंकि अनिवृत्तिकरणके माहात्म्यवश पहले उपशान्त भावसे परिणत हुए इन करणोंकी इस समय अपूर्वकरणमें प्रवेश करनेके समय ही पुनः उत्पत्ति होनेमें प्रतिबन्धका अभाव है ।
* उसी समय नौ प्रकारके मोहनीय कर्मका बन्धक हो जाता है ।
$ २०७. क्योंकि परिणाम विशेषका आश्रय करके हास्य, रति, भय और जुगुप्साकी यहाँपर बन्धशक्तिकी पुनः उत्पत्ति देखी जाती है ।
* उसी समय हास्य-रति तथा अरति शोक इनमें से किसी एक युगलका उदीरक होता है तथा भय और जुगुप्सा इनमेंसे किसी एकका या दोनोंका कदाचित् उदीरक होता है ।
$ २०८. इन छह नोकषायोंका उदयपरिणाम समयके अविरोधपूर्वक यहाँ पुनः प्रवृत्त हुआ यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अन्य कथन सुगम है ।
* तत्पश्चाद् अपूर्वकरणके संख्यातवें भागके व्यतीत होनेपर वहाँसे परभवसम्बन्धी नामकर्मकी प्रकृतियोंका बन्धक होता है ।
१. ता० प्रती पडिबंधभावादो इति पाठः ।