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उवसमसेढीदो ओदरमाणस्स परूवणा हिदिबंधसरिसो द्विदिबंधो जादो त्ति पदुप्पायणमुत्तरसुत्तोवण्णासो
® एवं बीइंदिय-तीइंदिय-चउरिदिय-असण्णिहिदिषधसमगो हिदिबंधो। ___ २०२. गयत्थमेदं सुत्तं । एवमेदेण कमेण अणियट्टिअद्धाए सेसबहुभागेसु संखेज्जसहस्समेत्तद्विदिबंधगम्मेसु वोलीणेसु तदो अणियद्विगुणट्ठाणस्स चरिमसमयमेसो हेट्ठिमगुणट्ठाणाहिमुहो होदूण समहिद्विदो त्ति जाणावणमुत्तरसुत्तणिद्देसो--
* तदो ठिदिबंधसहस्सेसु गदेसु चरिमसमयमणियही जादो । 5२०३. सुगमं । संपहि एत्थतणहिदिबंधपमाणावहारणहमिदमाह
ॐ चरिमसमयअणियहिस्स ठिविबंधो सागरोवमसदसहस्सपुधत्तमंतोकोडीए ।
२०४. चढमाणाणियट्टिपढमसमयट्ठिदिबंधपडिमागेणेत्थ सागरोवसदसहस्सपुधत्तमेत्तपयदहिदिबंधसिद्धीए विप्पडिसेहाभावादो।
आदि जीवोंके समान स्थितिबन्ध हो जाता है इस बातका कथन करनेके लिये आगेके सूत्रका उपन्यास करते हैं
__ * इस प्रकार क्रमसे द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और असंज्ञी जीवोंके स्थितिबन्धके समान स्थितिबन्ध हो जाता है।
5२०२. इस सूत्रका अर्थ स्पष्ट है। इस प्रकार इस क्रमसे जिसमें संख्यात हजार स्थितिबन्ध अन्तर्निहित हैं ऐसे अनिवृत्तिकरणके शेष बहुभागोंके व्यतीत होनेपर तदनन्तर अधस्तन गुणस्थानके अभिमुख हुआ यह जीव अनिवृत्तिकरणके अन्तिम समयमें स्थित होता है इस बातका ज्ञान करानेके लिये आगेके सूत्रका निर्देश करते हैं
* तत्पश्चात् हजारों स्थितिबन्धोंके बीत जानेपर यह जीव अन्तिम समयवर्ती अनिवृत्तिकरण हो जाता है।
5२०३. यह सूत्र सुगम है । अब यहाँ सम्बन्धी स्थितिबन्धके प्रमाणका अवधारण करनेके लिए आगेके सूत्रको कहते हैं
* अन्तिम समयवर्ती अनिवृत्तिकरण संयतके एक कोटी सागरोपमके भीतर एक लाखपृथक्त्व सागरोपमप्रमाण स्थितिबन्ध होता है।
5 २०४. चढ़नेवाले अनिवृत्तिकरणके प्रथम समयसम्बन्धी स्थितिबन्धके प्रतिभागके अनुसार यहाँपर अर्थात् उतरनेवाले अनिवृत्तिकरणके अन्तिम समयमें एकलाख पृथक्त्व सागरोपमप्रमाण स्थितिबन्धकी सिद्धि होनेमें निषेधका अभाव है।
१. ता प्रती-मंतो कोडाकोडीए इति पाठः ।