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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे 5२००. मोहणीयस्स पलिदोवममेत्ते द्विदिबंधे जादे तदोप्पहुडि अडियट्टिकरणद्धाए सेससंखेज्जेसु भागेसु अपुवकरणद्धाए च सव्विस्से पयारंतरपरिहारेण पलिदो० संखे०भागमेत्तपरिवड्ढीए द्विदिबंधो पयदि ति मणिदं होइ। एवं मोहणीयस्स पलिदोवमडिदिबंधविसयप्पहुडि उवरि सव्वत्थेव द्विदिबंधवुड्ढिपमाणावहारणं कादण संपहि एदम्हि चेव णिरुद्धट्ठाणे जो अवंतरविसेसो हिदिबंधविसयो तप्पदुप्पायणट्टमुवरिमं सुत्तपबंधमाह- .
* एदेण कमेण पलिदोवमस्स संखोजविभागपरिवहीए हिदिबंधसहस्सेसु गदेसु अण्णो एइंदियटिदिबंधसमगो हिदिबंधो जादो ।
$ २०१. पलिदोवमट्ठिदिबंधादो उवरि अणंतरपरूविदडिदिबंधपरिवड्ढीए वड्ढमाणस्स अणियट्टिउवसामगस्स संखेज्जेसु डिदिबंधसहस्सेसु समइक्कतेसु सागरोवमचउसत्तमागमेत्तएइंदियट्ठिदिबंधेण सरिसो मोहणी यस्स द्विदिबंधो जादो। सेसाणं च कम्माणमप्पप्पणो पडिमागेणेइंदियसमगो द्विदिबंधो एत्व जादो ति सुत्तत्थ संगहो । एवमेदेण कमेण पुणो वि वड्ढमाणस्स जहाकममप्पणो विसए बीइंदियादि
कालके समाप्त होनेतक स्थितिबन्धके पुनः पुनः पूर्ण होनेपर पन्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण स्थितिबन्धकी वृद्धि होती जाती है।
$ २००. मोहनीय कर्मका पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध हो जानेपर वहाँसे लेकर अनिवृत्तिकरणका जो शेष काल संख्यात बहुभागप्रमाण शेष रहता है उसमें और पूरे अपूर्वकरणके कालमें प्रकारान्तरके निषेध द्वारा पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण वृद्धिको लिये हुए स्थितिबन्ध प्रवृत्त होता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। इस प्रकार मोहनीय कर्म पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्धके स्थानसे लेकर आगे सर्वत्र ही स्थितिबन्धको वृद्धिके प्रमाणका अवधारण करके अब इसी विवक्षित स्थानमें जो स्थितिबन्ध विषयक अवान्तर विशेष होता है उसका कथन करनेके लिये सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
* इस क्रमसे पन्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण वृद्धि के द्वारा हजारों स्थितिबन्धोंके जानेपर अन्य स्थितिबन्ध एकेन्द्रिय जीवोंके स्थितिबन्धके समान हो जाता है।
5२०१. पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्धोंसे ऊपर अनन्तर प्ररूपित स्थितिबन्धसम्बन्धी वृद्धिके द्वारा वृद्धिको प्राप्त होनेवाले अनिवृत्ति उपशामक जीवके संख्यात हजार स्थितिबन्धोंके निकल जानेपर सागरोपमके चार सात भागप्रमाण एकेन्द्रिय जीवोंसम्बन्धी स्थितिबन्धके सदृश मोहनीय कर्मका स्थितिबन्ध हो जाता है। तथा शेष कर्मोंका अपने-अपने प्रतिभागके अनुसार एकेन्द्रिय जीवोंके समान स्थितिबन्ध हो जाता है यह सूत्रका समुच्चयार्थ है। इस प्रकार इस क्रमसे फिर भी स्थितिबन्धकी बृद्धि द्वारा वृद्धिको प्राप्त होनेवाले जीवके क्रमसे अपने-अपने स्थानमें द्वीन्द्रिय