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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे द्विदिबंधस्स अपुव्वा वड्ढी पलिदोवमं सादिरेगेण चउब्भागेण ऊणयं दट्टव्वं, पलिदोवमस्स तिण्णिचउभागा देसूणा णाणावरणादीणं तक्कालियट्ठिदिबंधवुड्ढीए पमाणमिदि वुत्तं होदि । तं जहा--पलिदोवमं चत्तारिभागे कादण तत्थ एगं चउन्मार्ग सयलमवणिय सेसतिण्णिचउब्भागेसु गहिदेसु चदुण्डं कम्माणं तक्कालियट्ठिदिबंधपमाणमागच्छदि । कि कारणं १ चत्तालीसपडिभागेण बदि मोहणीयस्स संपुण्णपलिदोवममेत्तं द्विदिबंधपमाणं लब्भइ तो तीसपडिभागियाणं णाणावरणादिकम्माणं केत्तियं लहामो त्ति ४०।१।३०/ तेरासियं काग जोइदे तप्पमाणागमणदंसणादो ३ । संपहि एदेसु तिण्णिचदुब्भागेसु पलिदो० संखे०भागमेने पुज्वबंधे अवणिदे अवणिदसेसपमाणं किंचूणतिण्णिचउब्भागमेत्तमेत्थतणवड्ढिपमाणं होदि । ६ १९६. संपहि णामागोदाणं तत्कालभाविद्विदिबंधवुड्ढिपमाणावहारण?मुत्तरसुत्तमोइण्णं-- ___ * ताधे चेव णामागोवाणं ठिदिबंधपरिवड्ढी अद्धपलिदोवमं संखेजभागूणं । $ १९७. एत्थ वि तेरासियकमेण अद्धपलिदोवममेत्तं तक्कालियट्ठिदिबंधमाणिय स्थितिबन्धकी अपूर्व वृद्धि साधिक चौथे भागसे हीन पल्योपमप्रमाण होती है, क्योंकि ज्ञानावरणादि कर्मोके पल्योपमके कुछ कम तीन बटे चार भाग तात्कालिक स्थितिबन्धको वृद्धिका प्रमाण है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। वह जैसे-पल्योपमके चार भाग करके उनमेंसे पूरे एक-चतुर्थ भागको अलग करके शेष तीन-चार भागोंके ग्रहण करनेपर चार कर्मोके तात्कालिक स्थितिबन्धका प्रमाण आता है, क्योंकि चालीसके प्रतिभागके अनुसार यदि मोहनीयकर्मके स्थितिबन्धका प्रमाण पल्योपममात्र प्राप्त होता है तो तीस प्रतिभागवाले ज्ञानावरणादि कर्मोंके स्थितिबन्धका प्रमाण कितना प्राप्त होगा इस प्रकार ।४०, १, ३० का राशिक करके हिसाब करनेपर उसका ३ आता हुआ देखा जाता है। विशेषार्थ-संज्ञी मिथ्यादृष्टि पर्याप्तके चारित्रमोहनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध चालीस कोडाकोड़ी सागरोपमप्रमाण प्राप्त होता है और ज्ञानावरणादि चार कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध तीस कोडाकोड़ी सागरोपमप्रमाण प्राप्त होता है उसी अनुपातमें यहाँपर चारित्रमोहनीयकर्मकी अपेक्षा ज्ञानावरणादि तीसिय चार कर्मोंका राशिक विधिसे तीन बटे चार भाग पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध प्राप्त होगा यह उक्त कथनका तात्पर्य है। $ १९६. अब नाम और गोत्रकर्मके तत्कालभावी स्थितिबन्धकी वृद्धिके प्रमाणका अवधारण करनेके लिये आगेके सूत्रका अवतार हुआ है * उसी समय नाम और गोत्र कर्मके स्थितिवन्धकी वृद्धि संख्यातवां भाग कम अर्धपल्योपमप्रमाण होती है । $ १९७. यहाँपर भी त्रैराशिकके क्रमसे तत्काल होनेवाले अर्धपल्योपमप्रमाण स्थितिबन्धको
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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