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भाग-14
उवसामणाक्खएण पडिवदमाणपरूवणा $ १४९. कुदो ? चढमाणपढमसमयमायावेदगस्स द्विदिबंधादो दुगुणमेत्तद्विदिबंधसिद्धीए णिप्पडिबंधमेत्थ संभवोवलंभादो। एवं च मायावेदगद्धं समाणिय से काले माणवेदगभावेण परिवदिदस्स जो परूवणाभेदो तदुप्पायणमुत्तरो सुत्तपबंधो
* तदो से काले तिविहं माणमोकड़ियूण माणसंजलणस्स उदयादिगुणसेटिं करेदि, दुविहस्स माणस्स आवलियबाहिरे गुणसेटिं करेदि, णवविहस्स वि कसायस्स गुणसेढिणिक्खेवो जा तस्स पडिवदमाणगस्स माणवेदगद्धा तत्तो विसेसाहिओ णिक्खेवो, मोहणीयवजाणं कम्माणं जो पढमसमयमुहुमसांपराइयेण णिक्खेवो णिक्खित्तो तस्स णिक्वेवस्स सेसे सेसे णिक्खिवदि।
१५०. एत्थ माणसंजलणस्स उदयादिगुणसेढिपरूवणाए मायासंजलणभंगो । णवरि माणवेदगद्धादो उवरि आवलियमेत्तेण विसेसाहियं कादूण गुणसेढिणिक्खेवमेसो करेदि त्ति वत्तब्वं । सेसं सुगमं ।
* पढमसमयमाणवेदगस्स णवविहो वि कसायो संकमदि ।
६१५१. कुदो ? तिसु संजलणेसु बज्झमाणेसु णवविहस्स वि कसायम्स अणाणुपुवीए संकम पडि विप्पडिसेहाभावादो ।
६१४९. क्योंकि चढ़नेवाले मायावेदक जीवके स्थितिबन्धसे यहाँ दुगुणे स्थितिबन्धकी सिद्धि बिना बाधाके उपलब्ध होती है। इस प्रकार मायावेदकके कालको समाप्त करके तदनन्तर समयमें मानवेदकभावसे परिणत हुए जीवको प्ररूपणामें जो भेद होता है उसका कथन करनेके लिये आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
* पश्चात् अनन्तर समयमें तीन प्रकारके मानका अपकर्षण करके मानसंज्वलनकी उदयादि गुणश्रेणि करता है तथा अन्य दो प्रकारके मानकी उदयावलि बाह्य गुणश्रेणि करता है। नौ प्रकारके कषायका भी गुणश्रेणिनिक्षेप होता है जो गिरनेवाले उसका मानवेदककाल है उससे विशेष अधिक निक्षेप होता है। तथा मोह कर्मको छोड़कर प्रथम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिकके द्वारा शेष कर्मोंका जो निक्षेप निक्षिप्त किया गया है उस निक्षेपके शेष-शेषमें निक्षिप्त करता है।
१५०. यहाँ मानसंज्वलनकी उदयादि गुणश्रेणिप्ररूपणा मायासंज्वलनके समान है । इतनी विशेषता है कि ऊपर आवलिमात्र विशेष अधिक यह गुणश्रेणिनिक्षेप करता है ऐसा यहाँ कहना चाहिये । शेष कथन सुगम है।
_ विशेषार्थ-यहाँ नौ प्रकारके कषायसे तीन मान, तीन माया और तीन लोभ लेने चाहिये।
* प्रथम समयवर्ती मानवेदकके नौ प्रकारकी ही कषायें संक्रमित होती हैं।
६१५१. क्योंकि तीनों संज्वलनोंका बन्ध होते समय नो प्रकारको ही कषायोंके अनानुपूर्वीसे संक्रम होनेके प्रति निषेध नहीं है।