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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . * ताधे तिण्हं संजलणाणं द्विदिबंधो चत्तारि मासा पडिवुण्णा, सेसाणं कम्माणं हिदिवंधो संखेजाणि वस्ससहस्साणि ।
$ १५२. कुदो ? चडमाणस्स विवज्जासेणेत्थ तत्तो दुगुणमेतद्विदिबंधसिद्धीए णिब्बाहमुवलंभादो।
* एवं द्विदिषधसहस्साणि बहूणि गंतूण माणस्स चरिमसमयवेदगस्स तिण्हं संजलणाणं ठिदिवंधो अट्ठ मासा अंतोमुहुत्तूणा, सेसाणं कम्माणं द्विदिबंधो संखेजाणि वस्ससहस्साणि ।।
__$ १५३. गयस्थमेदं सुत्तं । एवं माणवेदगद्धमुल्लंघियण से काले कोहवेदगद्धापढमसमए वट्टमाणस्स जो परूवणाविसेसो तप्पदुष्पायणट्ठमुत्तरो सुत्तपबंधो
8 से काले तिविहं कोहमोकड़ियूण कोहसंजणस्स उदयादिगुणसेटिं करेदि । दुविहस्स कोहस्स आवलियबाहिरे करेदि ।।
5 १५४. एदेण सरूवेण गुणसेढिणिक्खेवं करेदि ति सुत्तत्थो । * एम्हि गुणसेदिणिक्खेवो केत्तिओ कायव्यो ।
* उस समय तीनों संज्वलनोंका स्थितिबन्ध परिपूर्ण चार मास होता है, शेष कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यात हजार वर्षप्रमाण होता है।
६१५२. क्योंकि चढ़नेवाले जीवके विपर्याससे यहाँ उससे दुगुणे स्थितिबन्धकी सिद्धि निर्बाधरूपसे होती है।
* इस प्रकार बहुत हजारों स्थितिबन्धके गत होनेपर मानसंज्वलनके अन्तिम समयवर्ती वेदकके तीन संज्वलनोंका स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्त कम आठ मास होता है, शेष कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यात हजार वर्षप्रमाण होता है।
$ १५३. यह सूत्र गतार्थ है। इस प्रकार मानवेदककालको उल्लंघन करके तदनन्तर समयमें क्रोधवेदककालके प्रथम समयमें विद्यमान जीवको प्ररूपणामें जो विशेषता होती है उसका प्रतिपादन करनेके लिये आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
* तदनन्तर समयमें तीन प्रकारके क्रोधका अपकर्षण करके क्रोधसंज्वलनकी उदयादि गुणश्रेणि करता है तथा दो प्रकारके क्रोधकी उदयावलिके बाहर गुणश्रेणिनिक्षेप करता है।
$ १५४. इस रूपमें गुणश्रेणिनिक्षेप करता है यह इस सूत्रका अर्थ है। * इस समय गुणश्रेणिनिक्षेप कितना किया जाता है।
१. ताप्रती उदयादिगुणसेढिं करेदि इतः परं दुविहस्स कोहस्स उदयावलिबाहरे करेदि इति सूत्रांशः टीकायामुपलभ्यते । अनन्तरं तत्र कोहवेदगपढमसमए तिविहं कोहमोकडिडयूण इत्थधिकः पाठः समुपलभ्यते ।