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पृ. सं.
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विषय
विषय वेदकसम्यग्दृष्टि अनन्तानुबन्धीकी विसं- यह जीव कितने कालतक विशुद्धि द्वारा योजना किये बिना उपशमश्रेणी पर
वृद्धिको प्राप्त होता है इसका निर्देश २०८ आरोहण नहीं करता इसका निर्देश १९७ पश्चात् यह जीव भी प्रमत्त-अप्रमत्त अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजनाका निर्देश ५९७ गणस्थानोंमें परिवर्तन करता हआ तीन करणोंका नामनिर्देश
असातावेदनीय आदिका बन्ध अधःप्रक्तकरणमें जो कार्य नहीं होते करता है इसका निर्देश २०९ उसका खुलासा
१९८ | पश्चात् कषायोंको उपशमानेके लिये अपूर्वकरणमें होनेवाले कार्य विशेषोंका अधःप्रवृत्तकरण परिणाम करता है निर्देश
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इसका निर्देश अनिवृत्तिकरणमें होनेवाले कार्यविशेषों
अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना और
दर्शनमोहनीयको उपशामना करनेका निर्देश प्रकृतमें अन्तरकरण नहीं होता इसका
वाले इस जीवने स्थिति अनुभागनिर्देश
सत्कर्मकी अपेक्षा किन कर्मोंका नाश २००
किया इसका निर्देश अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करनेके
२१० बाद यह जीव प्रमत्तसंयत होकर इसके भी अधःप्रवृत्तकरणमें स्थितिघात असातावेदनीय आदिकाबन्ध करता
आदि कार्य नहीं होकर क्या होता है इसका निर्देश २०१ है इसका निर्देश
२१२ तत्पश्चात् वह दर्शनमोहनीयको उपशा- अधःप्रवृतकरण के अन्तिम समय में मना करता है इसका निर्देश
प्ररूपणा योग्य चार सूत्रगाथाओं
का निर्देश यह दर्शनमोहनीयकी उपशामनाके लिये।
२१४ तीन करण करता है इसका निर्देश २०३
प्रथम सूत्रगाथाका निर्देश यहाँ अपूर्वकरणसे स्थितिघात आदि सब
दूसरी सूत्रगाथाका निर्देश __कार्य होते हैं इसका निर्देश २०३ | तीसरी सूत्रगाथाका निर्देश
करणके प्रथम समयके स्थिति- . चौथी सूत्रगाथाका निर्देश सत्कर्मसे अन्तिम समयमें संख्यात- उन्हीं चार सूत्रगाथाओंके अर्थका विशेष
गुणा हीन होता है इसका निर्देश । २०४ __ खुलासा अनिवृत्तिकरणके संख्यात बहुभाग जाने अपूर्वकरणके प्रथम समयमें जो स्थितिपर सम्यक्त्वके असंख्यात समयप्रवद्धों
काण्डक आदि कार्य जिसरूप में की उदीरणाका निर्देश २०५ ___ आवश्यक होते हैं उनका निर्देश २२२ पश्चात् अन्तर्मुहूर्तवाददर्शनमोहनीयका | नियमानुसार स्थितिकाण्डकपृथक्त्व अन्तर करने के साथ वहाँ होनेवाले
होने पर निद्रा-प्रचलाकी यहाँ बन्धकार्य विशेषोंका निर्देश
२०५ . व्युक्छित्ति होती है इसका निर्देश २२५ सम्यक्त्वकी प्रथम स्थितिके क्षीण होने पर पश्चात् अन्तर्मुहुर्त जाने पर परधवइस जीव के मिथ्यात्वके प्रदेशपूजका
सम्बन्धी नामकर्मकी प्रकृतियोंकी सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वमें
बन्धुव्युच्छित्ति होती है इसका विध्यातंसक्रम होता है गुणसंक्रम निर्देश नहीं इसका निर्देश
२०७ | प्रकृतमें उपयोगी अल्पबहुत्वका निर्देश २२७
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