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विषय
( ३५ ) पृ. सं. . विषय
पृ.सं. संयतसायतविषयक सत्, संख्या आदि आठ तीव्र-मन्दताकी अपेक्षा लब्धिस्थान अनुयोगद्वारोंको जाननेको सूचना १३७
विषयक अल्पबहुत्व प्रकृतमें तीव्र-मन्दताविषयक स्वामित्वका निर्देश
१३९
संयतासंयत किस कषायका वेदन करता तथा एतद्विषयक अल्पबहुत्वका निर्देश १४१ | है और किसका नहीं करता है संयतासंयतके लब्धिस्थानोंका निर्देणश १४१ ।। इसका स्पष्टीकरण
१५३ चारित्रलब्धि अर्थाधिकार मंगलाचरण
१५७ | संज्ञा होती है इसकी सकारण सूचना १६६ चारित्रलब्धि अर्थाधिकारमें संयमासंयम- तदनन्तर चारित्रलब्धिमें यथासम्भव वृद्धि लब्धिमें अर्थाधिकारमें निबद्ध सूत्र
हानि होनेका सकारण निर्देश १६७ गाथाको जाननेको सूचना १५७ प्रकृतमें उपयोगी अल्पबहुत्वका निर्देश १६८ अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समयमें प्ररू- . जो असंयमी होकर पुनः संयमको प्राप्त
पणायोग्य चार गाथाओंका निदेश १५८ करता है उसके सम्बन्धमें स्पष्टीकरण १७० जो वेदकप्रायोग्य मिथ्यादष्टि या वेदक- चारित्रलब्धि सम्पन्न जीवोंके आठ
सम्यदृष्टि संयमको प्राप्त करता है ___अनुयोगद्वारोंका नामनिर्देश १७१ उसकी अपेक्षा क्रमसे प्रथम सूत्र- चारित्रलब्धिसम्बन्धी तीव्र-मन्दता गाथाका विशेष स्पष्टीकरण
विषयक स्वामित्व और अल्पबहुत्व १७४ दूसरी सूत्रगाथाका विशेष खुलासा ५ १६० तीन प्रकारके चारित्रलब्धिस्थानोंका नाम तीसरी सूत्रगाथाका ,
१७५ " चौथी , " "
प्रतिपातस्थानका स्वरूपनिर्देश संयमको प्राप्त होनेवालेकी उपक्रमविधिके उत्पादकस्थानका ,
१७७ व्याख्यानकी प्रतिज्ञा
१६४ लब्धिस्थान किन्हें कहते हैं इसका निर्देश. १७७ उक्त जीवके प्रारम्भके दो करण होनेका उक्त-लब्धिस्थानोंके अल्पबहुत्वका निदेश १७८
निर्देश तथा उनका विवेचन पहलेके तीब्र-मन्दताद्वारा संयमविशेषविषयक . समान जाननेकी सूचना
अल्पबहुत्वका निर्देश
। १७९ चारित्रलब्धिकी प्राप्ति होने पर अ.
चूर्णिसूत्रों द्वारा उक्त अल्पबहुत्वका निर्देश १८२ काल तक उत्तरोत्तर अनन्तगुणी उपशान्तकषाय आदि सभी वीतरागोंका
विशुद्धि होते जानेका निर्देश १६५ । चारित्रलब्धिस्थान एक प्रकारका इसकी एकान्तानुवृद्धि के काल में अपूर्व करण । होता है इस विषयका स्पष्टीकरण १८७
चारित्रमोहनीय उपाशामना अर्थाधिकार मंगलाचरण
१९३ चारित्रमोहनीय उपाशामना अर्था
पांचवीं , , , घिकारमें सर्वप्रथम सत्तगाथाओंको
छठी ,
. जाननेकी सूचना
१९० , ,
१९४ प्रथम सूत्रगाथाका निर्देश
१९१ सातवीं , , ,
१९५ १९१ | आठवीं , " ".. तीसरी " " " १९२ | उपक्रमपरिभाषाका निर्देश
१९६
४
१६२
निदेश
१७६
१८९ | चौथी
, , ,
दूसरी
"
"
"