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गाथा १२३ ]
चरितमोहणीय-उवसामणाए करणकज्जणिहसो
समयाहियावलियमेत्तपढमट्ठिदिं धरेणावट्ठिदिस्स जो परूवणामेदो तप्पदुष्पायणफलो उत्तरमुत्तणिद्द सो—
* पडिआवलियाए एक्कम्हि समए सेसे माणसंजलणस्स दोआवलियस मयूणबंधे मोत्तण सेसं तिविहस्स माणस्स पदेससंतकम्मं चरिमसमय वसंतं ।
$ २३४. एदम्मि अवस्थाविसेसे तिविहस्स माणस्स हिदि- अणुभाग-पदेस संत कम्मं सव्वं पि जहाणिहिदुपमाणमाणसंजलणणवकवंधुच्छ्ट्टिा वलियवज्रं सव्वोवसामणाए चरिमसमय वसंतं जादमिदि वृत्तं होइ, जहाकममुवसामिजमाणस्स तस्स ताघे णिवसेसमुवसंतभावेण परिणमणदंसणादो । एत्थ उच्छिट्ठावलियमप्पहाणं काढूण माणसंजणस्स समयूणदोआवलियबंधे मात्तणे ति सुत्ते णिद्दिट्ठे । एत्थेव समए माणसंजणस्स जहणिया ट्ठिदिउदीरणा च दट्ठव्वा । संपहि एत्थतणट्ठिदिबंधपमाणावहारणमुत्तरमुत्तमोइण्णं
* ताधे माण-माया-लोभसंजलणाणं दुमासट्ठिदिगो बंधो ।
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$ २३५. सुगमं ।
* सेसाणं कम्माणं द्विदिबंधो संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । कर एक समय अधिक एक आवलिप्रमाण प्रथम स्थितिको धरकर स्थित हुए जीवके विषय में जो प्ररूपणाभेद है उसका कथन करनेके लिये आगेके सूत्रका निर्देश करते हैं-
* प्रत्यावलिमें एक समय शेष रहनेपर मानसंज्वलनके एक समय कम दो आवलिप्रमाण समयप्रबद्धोंको छोड़कर तीन प्रकारके मानका शेष प्रदेशसत्कर्म अन्तिम समय में उपशान्त हो जाता है ।
$ २३४ इस अवस्थाविशेषमें मानसंज्वलनके यथा निर्दिष्ट प्रमाणवाले नवकबन्धकी उच्छिष्टावलिको छोड़कर तीन प्रकारके मानकी सभी स्थिति, अनुभाग और प्रदेश कर्म सर्वोपशामनारूपसे अन्तिम समय में उपशान्त हो जाता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है, क्योंकि यथाक्रम उपशमाये जानेवाले उसका उस समय निरवशेष उपशान्तरूपसे परिणमन देखा जाता है । यहाँ पर उच्छिष्टावलिको गौणकर मानसंज्वलन के एक समय कम दो आवलिप्रमाण बन्धको छोड़कर ऐसा सूत्र में निर्देश किया है। तथा इसी समय मानसंज्वलनकी जघन्य स्थिति- उदीरणा जाननी चाहिए। अब यहाँ पर स्थितिबन्धके प्रमाणका निश्चय करनेके लिए आगेका सूत्र आया है
* उस समय मान, माया और लोभ संज्वलनका स्थितिबन्ध दो माह प्रमाण
होता है।
$ २३५. यह सूत्र सुगम है ।
* शेष कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यात हजार वर्षप्रमाण होता है ।