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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ चरित्तमोहणीय-उवसामणां
$ २३६. गयत्थमेदं सुतं । एदम्मि चेव समए माणसंजलणस्स बंधोदया वोच्छिण्णा, उप्पादाणुच्छेदमस्सियूण तदुववत्तदो ।
* तदो से काले मायासंजलणमोकड्डियूण मायासंज्जलणस्स पढमहिदि करेदि ।
$ २३७. तदो माणवेदगचरिमसमयादो से काले समणंतर समए मायासंजलणपदेसग्गमोकड्डियूण उदयादिगुण सेठिकमेण णिक्खिवमाणो मायासंजलणस्स पढमडिदिमंतोमुहुत्तायाममुप्पादिय मायावेदगो होदि ति । एत्थ मायासंजलणस्स पढमट्ठिदिदीहत्तमावलियम्भहियसग वेदगद्धामेत्तमिति गहेयव्वं ।
* ताधे पाये तिविहाए मायाए उवसामगो ।
$ २३८. गयत्थमेदं सुत्तं । संपहि एदम्मि चैव मायावेदगपढमसमये द्विदिबंध - पमाण परूवणमुत्तरमुत्तारंभो-
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* माया-लोभसंजलणाणं द्विदिबंधो दो मासा अंतोमुहुरोण ऊणया । $ २३९. अनंतराइकंतदोमासमेत ट्ठिदिबंधादो अंतोमुहुत्तमेत्तमोसरियूण दोन्हं संजणाण मेहिं ट्ठिदिबंधमाढवेदित्ति वृत्तं होइ ।
* सेसाणं कम्माणं द्विदिगंधो संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि ।
$ २४०. अवगयत्थमेदं सुत्तं ।
$ २३६. यह सूत्र गतार्थ है । इसी समय मानसंज्वलन के बन्ध और उदय व्युच्छिन्न होते हैं, क्योंकि उत्पादानुच्छेदका आलम्बनकर ऐसा बन जाता है ।
* इसके एक समय बाद मायासंज्वलनका अपकर्षणकर उसकी प्रथम स्थिति करता है ।
९ २३७. मानवेदकके अन्तिम समयके बाद तदनन्तर समय में मायासंज्वलन के प्रदेशपुञ्जका अपकर्षणकर तथा उदयादि गुणश्रेणिरूपसे उसका निक्षेप करता हुआ मायासंज्वलनकी प्रथम स्थितिको अन्तर्मुहूर्तप्रमाण उत्पन्न करके मायासंज्वलनका वेदक होता है । यहाँपर मायासंज्वलनको प्रथम स्थितिको लम्बाई एक आवलि अधिक अपने वेदक कालप्रमाण होती है ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए ।
* वहाँसे लेकर यह तीन प्रकारकी मायाका उपशामक होता है।
$ २३८. यह सूत्र गतार्थ है । अब इसी मायावेदकके प्रथम समय में स्थितिबन्धके प्रमाणका कथन करनेके लिए आगेके सूत्रका आरम्भ करते हैं
* माया और लोभसंज्वलनोंका स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्तकम दो माह प्रमाण होता है ।
$ २३९. अनन्तर पूर्व व्यतीत हुए दो माह प्रमाण स्थितिबन्धसे अन्तर्मुहूर्त घटकर इस समय दो संज्वलनोंका स्थितिबन्ध आरम्भ करता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । * शेष कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यात हजार वर्षप्रमाण होता है । $ २४०. इस सूत्र का अर्थ अवगत है ।