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चरितमोहणीय-उवसामणाए करणकज्जणिद्दे सो
* ठिदिबंधे पुणे पुणे संजलणाणं ठिदिबंधो विसेसहीणो । $ २१५. केत्तियमेत्तेण ! अंतोमुहुत्तमेत्तेण ।
* सेसाणं कम्माणं ठिदिबंधों संखेज्जगुणहीणो ।
$ २१६. गयत्थमेदं सुत्तं । तदो एत्थ विट्ठिदिबंध अप्पा बहुअमणंतर परूविदेणेव कमेणाणुगंतव्वं, विसेसाभावादो । ठिदि - अणुभागखंडयघादा वि मोहणीयवजाणं कम्माणं पुव्वत्तेणेव कमेण पयति त्ति वत्तव्वं ।
गाथा १२३ ]
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* एदेण कमेण जाधे आवलिय-पडिआवलियाओ सेसाओ को हसंजलसाधे विदियट्ठिदीदो पढमट्ठिदीदो आगाल - पडिआगालो वोच्छिण्णो ।
$ २१७. एत्थावलिया त्ति वृत्ते उदयावलिया गहेयव्वा । पडिआवलिया ति ते उदयावलियादो बाहिरा उदयावलिया घेत्तव्वा । एत्तियमेत्तावसेसाए कोहसंजलणपढमट्टिदीए आगाल-पडिआगालवोच्छेदो होइ । एदं च उप्पादाणुच्छेदमस्सियूण भणिदं, दोसु आवलियासु सेसासु आगाल - पडिआगालो होदूण समयूणासु दोसु आवलियासु ती आगाल - पडिआगालवोच्छेदस्स इह विवक्खियत्तादो ।
* पडिआवलियादो चेव उदीरणा कोहसंजलणस्स ।
* प्रत्येक स्थितिबन्धके पूर्ण होनेपर संज्वलनचतुष्कका अन्य स्थितिबन्ध विशेष हीन होता है ।
$ २१५. शंका — कितना हीन होता है ?
समाधान- - पूर्वके स्थितिबन्ध से अन्तर्मुहूर्त हीन होता है ।
* शेष कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यातगुणा हीन होता है ।
$ २१६. यह सूत्र गतार्थ है, इसलिए यहाँपर भी स्थितिबन्धसम्बन्धी अल्पबहुत्वको पूर्व में कहे गये क्रमके अनुसार ही जानना चाहिए, क्योंकि उससे इसमें कोई अन्तर नहीं है । स्थितिकाण्डकघात और अनुभागकाण्डकघात भी मोहनीय कर्मको छोड़कर शेष कर्मोंके पूर्वोक्त क्रमसे ही प्रवर्तते हैं ऐसा यहाँ कहना चाहिए ।
* इस क्रमसे जब क्रोधसंज्वलनकी आवलि - प्रत्यावलि शेष रहती है तब द्वितीय स्थितिमेंसे आगाल और प्रथम स्थितिमेंसे प्रत्यागाल व्युच्छिन्न हो जाते हैं ।
$ २१७. यहाँपर आवलि ऐसा कहनेपर उदयावलिको ग्रहण करना चाहिए तथा प्रत्यावलि ऐसा कहनेपर उ दयावलिसे बाहरकी उदयावलिको ग्रहण करना चाहिए । क्रोधसंज्वलनकी प्रथम स्थिति के इतनी मात्र शेष रहनेपर आगाल और प्रत्यागालकी व्युच्छित्ति हो जाती है । यह उत्पादानुच्छेदका आश्रय लेकर कहा है, क्योंकि प्रथम स्थितिमें दो आवलियोंके शेष रहनेतक आगाल और प्रत्यागाल होकर एक समय कम दो आवलियोंके शेष रहनेपर आगाल और प्रत्यागालकी यहाँप र व्युच्छित्ति विवक्षित है ।
* तब क्रोध संज्वलनकी प्रत्यावलि में से ही उदीरणा होती है ।