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गाथा १२३ ]
चरितमोहणीय-उवसामणाए करणकज्जणिद्देसो
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दट्ठव्वं । एदं च एयसमयपबद्धविवक्खाए परूविदं । णाणासमयपबद्धप्पणाए चउव्विह-हाणीहि संकमपवृत्तीए संभवदंसणादोत्ति एदस्स अत्थविसेसस्स जाणावणफलमुत्तरमुत्तं
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* एस कमो एयसमयपबद्धस्स चेव ।
$ २११. अयमेदस्स भावत्थो - णाणासमयपबद्धा चउव्विहवड्डि- हाणिपरिणदजोगेहिं बंधावलियादिक्कतवसेण संकमपाओग्गभावमुवदुकमाणा पुव्विल्लजोगाणुसारेणेवं संकामिजंति त्तिण तत्थ विसेसहाणीए संकमणियमो, किंतु सिया विसेसहीणं, सिया विसेसाहियं संखेज्जासंखेज्जभागेहिं, सिया संखेजगुणहीणं, सिया संखेजगुणं, सिया असंखेज्जगुणहीणं, सिया असंखेज्जगुणं च णाणासमयपबद्धंणिबद्धं संकमदव्वं होइ, तणिबंधणजोगाणं तहाभावेणावद्वाणादो त्ति । तम्हा णिरुद्धेयसमयपबद्ध पडिबद्धं चैव पदेसग्गं विसेसंहीणं होण संकामिज्जदि त्ति पुव्विल्लम पाबहुअं सुसंबद्धं ।
* पढमसमयअवेदस्स संजलणाणं ठिदिबंधो बत्तीस वस्साणि तो मुहूत णाणि । सेसाणं कम्माणं ठिदिबंधो संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि ।
$ २१२. चरिमसमयसवेदस्स ठिदिबंधो संजलणाणं संपुष्णबत्तीसवस्समेत्तो तमि चैव पज्जवसिदो । तदो तम्मि ट्ठिदिबंधे समत्ते पढमसमयअवेदो अण्णं द्विदिही प्रदेशपुञ्ज संक्रमित होता हुआ जानना चाहिए। यह एक समयप्रबद्धको विवक्षित कर कहा है, क्योंकि नाना समयप्रबद्धों की विवक्षा में चार प्रकारकी वृद्धि और हानिरूपसे संक्रमकी प्रवृत्तिकी संभावना देखी जाती है इस प्रकार इस अर्थविशेषका ज्ञान करानेके लिए आगे के सूत्र को कहते हैं
* यह क्रम एक समयप्रबद्धका ही है ।
$ २११. इस सूत्रका यह भावार्थ है-बन्धको प्राप्त हुए नाना समयप्रबद्ध चार प्रकार - की वृद्धि और हानिरूपसे परिणत हुए योगोंके द्वारा बन्धावलिके व्यतीत हो जाने पर संक्रमभावके योग्य होकर पूर्वके योगके अनुसार ही संक्रमित होते हैं, इसलिए वहाँ विशेष हानि रूप से संक्रमका नियम नहीं है । किन्तु संख्यातवें और असंख्यातवें भागरूपसे कदाचित् विशेष हीन और कदाचित् विशेष अधिक तथा कदाचित् संख्यात गुणहीन और कदाचित् संख्यात गुणा तथा कदाचित् असंख्यातगुणा होन और कदाचित् असंख्यातगुणा नाना समयप्रबद्धसम्बन्धी संक्रमद्रव्य होता है, क्योंकि उन नाना समयप्रबद्धोंके कारणभूत योगोंका उसी प्रकारसे अवस्थान होता है, इसलिए एक समयप्रबद्धसे सम्बन्धित प्रदेशपुञ्ज ही विशेष हीन होकर संक्रमित किया जाता है, इसलिए पूर्वका अल्पबहुत्व सुसम्बद्ध है ।
* प्रथम समयवर्ती अपगतवेदी जीवके चारों संज्वलनोंका स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्त कम बत्तीस वर्ष है और शेष कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यात हजार वर्ष है ।
$ २१२. सवेदी जीवके अन्तिम समय में संज्वलनोंका स्थितिबन्ध सम्पूर्ण बत्तीस वर्षप्रमाण होता है, क्योंकि उस स्थितिबन्धका वहीं पर्यवसान हो जाता है, इसलिए उस स्थिति
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