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गाथा १२३ ] चरित्तमोहणीय-उवसामणाए करणकजणिदेसो
२४३ $ ११०. कुदो १ मोहणीयट्ठिदिबंधे हेट्ठा असंखेज्जगुणहाणीए णिवदिदे एदेसिं द्विदिबंधस्स तत्तो असंखेज्जगुणत्तसिद्धीए णायागदत्तादो। संपडि किं कारणमेवंविहगुणगारपरावत्तीए एत्थप्पाबहुअस्स विवज्जासो जादो त्ति संदेहेण घुलमाणहिययस्स सिस्सस्स णिरारेगीकरणटुं पयदप्पाबहुअसमत्थणापरमुवरिमपबंधमाह-- __* एक्कसराहेण मोहणीयस्स हिदिबंधो णाणावरणादिहिदिबंधादो हेह्रदो जादो असंखेजगुणहीणो च । णत्थि अण्णो वियप्पो । __१११. एकवारेणेव विसेसघादं लद्ध ण मोहणीयस्स द्विदिबंधो णाणावरणादीणं चदुण्हं कम्माणं द्विदिबंधादो हेढदो जायमाणो असंखेज्जगुणहीणो चेव जादो त्ति पत्थि अण्णो वियप्पो, असंखेज्जभागहीणो संखेज्जभागहीणो संखेज्जगुणहीणो वा अहोदूण असंखेज्जगुणहाणीए चेव परिणदो त्ति वुत्तं होइ । संपहि एदस्सेवत्थस्स फुडीकरण?मुत्तरसुत्तमोइण्णं-- ___* जाव मोहणीयस्स हिदिबंधो उवरि आसी ताव असंखेजगुणो आसी । असंखेजगुणादो असंखेजगुणहीणो जादो।।
$ ११२. गयत्थमेदं सुत्तं । जदो एवं तदो एवंविहो अप्पाबहुअपयारो एत्थ संजादो त्ति जाणावणमुत्तरसुत्तमाह--
६११०. क्योंकि मोहनीयके स्थितिबन्धके असंख्यात गुणहानिरूपसे नीचे पतित होनेपर इन चार कर्मोंका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा सिद्ध होता है यह न्यायप्राप्त है। अब इस प्रकार गुणकारके परावर्तनका क्या कारण है जिससे यहाँपर अल्पबहुत्वमें लौट-पलट हो गई है इस प्रकारके सन्देहसे जिसका हृदय घुल रहा है ऐसे शिष्यको निःशंक करनेके लिये प्रकृत अल्पबहुत्वका समर्थन करनेवाले आगेके प्रबन्धको कहते हैं
* क्योंकि एक वारमें ही मोहनीयकर्मका स्थितिबन्ध ज्ञानावरणादि चार कर्मोंके स्थितिबन्धकी अपेक्षा कम स्थितिवाला हो जाता है जो उनके स्थितिबन्धसे असंख्यागुणा हीन होता है, यहाँ अन्य विकल्प नहीं है।
१११. एक वार में ही विशेष घातको प्राप्तकर मोहनीयकर्मका स्थितिबन्ध ज्ञानावरणादि चार कर्मोंके स्थितिबन्धकी अपेक्षा कम स्थितिकाला होता हुआ नियमसे असंख्यातगुणा हीन हो जाता है, इसलिये यहाँ पर अन्य विकल्प सम्भव नहीं है। अर्थात् वह असंख्यात भागहीन, संख्यात भागहीन अथवा संख्यात गुणहीन न होकर असंख्यात गुणहानिरूपसे ही परिणत होता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। अब इसी अर्थको स्पष्ट करनेके लिये आगेका सूत्र आया है
* जब तक मोहनीय कर्मका स्थितिबन्ध ज्ञानावरणादि चार कर्मों के स्थितिवन्धसे अधिक था तब तक वह असंख्यातगुणा था। अब असंख्यातगुणेके स्थानमें असंख्यातगुणा हीन हो गया है।
$ ११२. यह सूत्र गतार्थ है। जब कि ऐसा है, इसलिए इस प्रकारका अल्पबहुत्वका प्रकार यहाँपर हो गया है इस बातका ज्ञान करानेके लिये आगेके सूत्रको कहते हैं