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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ चरित्तमोहणीय-उवसामणा ६१०७. मोहणीयस्स दूरावकिट्टिविसयमुल्लंघियण परदो वि संखेज्जसहस्समेत्ताणि द्विदिबंधोसरणाणि एदेणेवप्पाबहुअकमेण गदाणि ति एसो एदस्स सुत्तस्स भावत्थो। एवं सव्वेसिं कम्माणं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तहिदिबंधे असंखेज्जगुणहाणीए संखेज्जसहस्सवारमोसरदि, तमि उद्दे से अप्पाबहुअपरूवणाए को वि विसेसो अस्थि त्ति तप्पदुप्पायणमुत्तरसुत्तं
* तदो अण्णो द्विदिवंधो । णामा-गोवाणं थोवो । 5 १०८. सुगमं । * मोहणीयस्स द्विदिवंधो असंखेज्जगुणो।"
६१०९. कुदो ? ताधे मोहणीयद्विदिबंधस्स विसेसोवट्टणावसेण चदण्डं कम्माणं द्विदिबंधादो एक्कसराहेण असंखेज्जगुणहाणीए ओसरणदंसणादो । कुदो एवमेत्थ एवंविहो विवज्जासो जादो त्ति णासंकणिजं, अप्पसत्थयरस्स मोहणीयस्स विसोहिपरिणामेसु वड्डमाणेसु विसेसघादपत्तीए पडिबंधाभावादो।
* णाणावरणीय-दसणावरणीय-वेदणीय-अंतराइयाणं हिदिबंधो असंखेजगुणो।
६ १०७. मोहनीयकर्मके दूरापकृष्टिसम्बन्धी स्थलको उल्लंघन कर आगे भी संख्यात हजार स्थितिबन्धापसरण इसी अल्पबहुत्व क्रमसे व्यतीत हुए यह इस सूत्रका भावार्थ है। इस प्रकार सभी कर्मोंके पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थितिबन्धमें असंख्यात गुणहानिरूपसे संख्यात हजार बार अपसरण करता है, उस स्थलपर अल्पबहुत्वकी प्ररूपणामें कोई भी विशेषता है इसका कथन करनेके लिये आगेके सूत्रको कहते हैं
* तत्पश्चात् अन्य स्थितिबन्ध प्रारम्भ होता है। उसकी अपेक्षा नामकर्म और गोत्रकर्मका स्थितिबन्ध सबसे थोड़ा है।
$ १०८. यह सूत्र सुगम है। * उससे मोहनीय कर्मका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है ।
६१०९ क्योंकि तब मोहनीय कर्मके स्थितिबन्धका विशेष अपवर्तन होनेसे चार कर्मोके स्थितिबन्ध की अपेक्षा इसका एक साथ असंख्यात गुणहानिरूपसे अपसरण देखा जाता है।
शंका--यहाँ पर इस प्रकारका विपर्यास कैसे हो गया?
समाधान-ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि मोहनीय कर्म अतिशय अप्रशस्त कर्म है, अतः विशुद्धिरूप परिणामोंमें वृद्धि होनेपर उसका विशेष घात होनेमें कोई रुकावाट नहीं पाई जाती। ___ * उससे ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तराय कर्मका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है।
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