________________
गाथा १२३ ] चरित्तमोहणीय-उवसामणाए करणकज्जणिदेसो
२३५ बंधो विसेसाहिओ । केत्तियमेत्तो विसेसो ? तिभागमेत्तो। हेडिमासेसहिदिबंधेसु वि एसो चेव अप्पाबहुअपयारो दट्टव्वो । संपहि जाव एदुरं पावइ ताव सव्वेसि कम्माणं हिदिबंधोसरणं पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागो चेव, णाण्णो वियप्पो ति पदुप्पायणट्ठमुत्तरसुत्तमोइण्णं
* एदम्हि काले अदिच्छिदे सव्वम्हि पलिदोवमस्स संखेजदिभागेण ठिदिवघेण ओसरदि।
5 ८५ गयत्थमेदं सुत्तं, एदम्मि वियसे पयारंतरसंभवाणुवलंभादो । संपहि एत्तो उवरि वि णाणावरण-दसणावरण-वेदणीय-मोहणीय-अंतराइयाणमेसो चेव द्विदिबंधोसरणकमो ताव दट्टव्वो जाव पलिदोवममेत्तं द्विदिबंधं ण पावेदि। णामा-गोदाणं पुण अण्णारिसो द्विदिबंधोसरणक्कमो एत्तो पाए पयदि त्ति पदुप्पाएमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ
* णामा-गोदाणं पलिदोवमहिदिगादो बंधादो अण्णं जं हिदिबंध पंधहिदि सो हिदिगंधो संखेजगुणहीणो।
८६. कुदो एवं चे ? सहावदो चेव, पलिदोवमट्ठिदिगे बंधे जादे तत्तो पहुडि
कोका स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। विशेषका प्रमाण कितना है ? द्वितीय भागप्रमाण है। उससे मोहनीयकर्मका स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। विशेषका प्रमाण कितना है ? तृतीय भागप्रमाण है। अधस्तन समस्त स्थितिबन्धोंमें भी अल्पबहुत्वका यही प्रकार जानना चाहिए। अब इतने दूर स्थानके प्राप्त होने तक सब कर्मोंका स्थितिबन्धापसरण पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण ही होता है, अन्य विकल्प नहीं है इस बातका कथन करनेके लिये आगेका सूत्र आया है
___ * इस कालके जाने तक सर्वत्र पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण स्थितिबन्धापसरण होता है।
६८५. यह सूत्र गतार्थ है, क्योंकि इस विषयमें प्रकारान्तर सम्भव नहीं है। अब इससे आगे भी ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय और अन्तराय कमके स्थितिबन्धापसरणका यह क्रम तब तक जानना चाहिए जब तक पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्धेको नहीं प्राप्त होता। परन्तु यहाँसे लेकर नामकर्म और गोत्रकर्मका अन्य प्रकारका स्थितिबन्धापसरण प्रवृत्त होता है इसका कथन करते हुए चूर्णिकार आचार्य आगेके सूत्रको कहते हैं
* नामकर्म और गोत्रकर्मके पन्योपमप्रमाण स्थितिवाले बन्धसे अन्य जिस बन्धको बाँधेगा वह स्थितिबन्ध संख्यातगुणा हीन होता है।
६ ८६. शंका-ऐसा किस कारणसे है ? समाधान-स्वभावसे ही ऐसा है, क्योंकि पल्योपमप्रमाण स्थितिवाले बन्धके हो