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- जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [चरित्तमोहणीय-उवसामणा हिंतोमज्झिमट्ठिदिबंधोसरणट्ठाणाणि आणेयूण णामा-गोदाणं पलिदोवममेत्तट्ठिदिबंधविसयो एसो परूवेयव्यो । संपहि णामा-गोदाणं पलिदोवमद्विदिगे बंधे जादे सेसकम्माणमत्थतणो द्विदिबंधो किंपमाणो होदि त्ति आसंकाए इदमाह--
___ *णाणावरणीय-दसणावरणीय-वेदणीय-अंतराइयाणंच दिवडपलिदोवममेत्तहिदिगो बंधो।
$८३. एत्थ वीसपडिभागेण जइ एगपलिदोवममेत्तो द्विदिबंधो लब्भदि तो तीसपडिभागेण किं लभामो त्ति तेरासियं कादण दिवड्डपलिदोवममेत्तपयदट्ठिदिबंधविसयो सिस्साणं पडिबोहो कायव्यो । तस्स ढवणा-२०११३०।
* मोहणीयस्स वेपलिदोवमहिदिगो बंधो ।
5८४. एत्थ वि पुव्वं व तेरासियं कादूण पयददिदिबंधसिद्धी वत्तव्वा ।२०।१।४०। एत्थ पुण द्विदिबंधप्पाबहुअमेवं कायव्वं । णामागोदाणं द्विदिबंधो थोवो। चदुण्हं कम्माणं डिदिबंधो विसेसो । केत्तियमेत्तो विसेसो ? दुभागमेत्तो। मोहणीयस्स द्विदिशेष रहें उनमेंसे मध्यके स्थितिबन्धापसरण स्थानोंको विताकर नाम और गोत्रका पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्धविषयक इस स्थितिबन्धका कथन करना चाहिए। अब नाम और गोत्र कर्मका पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध हो जानेपर शेष कर्मोंका यहाँ सम्बन्धी स्थितिबन्ध कितना होता है ऐसी आशंका होनेपर इस सूत्रको कहते हैं
* ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तराय कर्मका डेढ़ पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध होता है।
६८३. यहाँ पर वीसिय कर्मोके प्रतिभागसे यदि एक पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध प्राप्त होता है तो तीसिय कर्मोके प्रतिभागसे कितना प्राप्त होगा इस प्रकार त्रैराशिक करके डेढ़ पल्योपमप्रमाण प्रकृत स्थितिबन्धविषयक शिष्योंको प्रतिबोध कराना चाहिए। उसकी स्थापना इस प्रकार है-वीसिय कोंका पल्योपम स्थितिबन्ध तो तीसिय कर्मोंका कितना ऐसा त्रैराशिक करने पर १३ पल्योपम स्थितिबन्ध प्राप्त होता है।
विशेषार्थ—यहाँ पर वीसिय कर्मोंसे नाम और गोत्र कोका ग्रहण किया गया है और तीसिय कर्मोंसे ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और मोहनीय कर्मोंका ग्रहण किया गया है । अल्पबहुत्वके अनुसार नाम और गोत्रकर्मके स्थितिबन्धसे उक्त कर्मोंका स्थितिबन्ध डेढ़ गुणा होता है। इससे स्पष्ट है कि जहाँ अनिवृत्तिकरणमें नाम और गोत्र कर्मका एक पल्योपम स्थितिबन्ध होता है वहाँ उक्त कर्मोंका स्थितिबन्ध डेढ़ पल्योपम ही होगा।
* तथा मोहनीय कर्मका दो पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध होता है ।
६.८४. यहाँपर भी पहलेके समान त्रैराशिक करके प्रकृत स्थितिबन्धकी सिद्धि करनी चाहिए। यथा-वीसिय कर्मोंका १ पल्योपम स्थितिबन्ध तो चालीसिय कर्मोंका कितना ऐसा त्रैराशिक करनेपर २ पल्योपम प्राप्त होता है। परन्तु यहाँपर स्थितिबन्धसम्बन्धी अल्पवहुत्व इस प्रकार करना चाहिए-नामकर्म और गोत्रकर्मका स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। उससे चार