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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ चरित्तमोहणीय- उवसामणा
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संखेज्जाणं भागाणं द्विदिबंधोसरणणियमदंसणादो ।
* सेसाणं कम्माणं द्विदिबधो पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागहीणो ।
$ ८७. ताघे पुण सेसाणं कम्माणं णाणावरण दंसणावरण-वेदणीय - मोहणीयंतराइयाणं द्विदिबंधो पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागपरिहीणो चेत्र होइ, तेसिमज्ज वि पलिदोवमठिदिबंधविसयाणुप्पत्ती दो । ताधे अप्पाबहुअं - - णामा - गोदाणं द्विदिबंधो थोवो । चदुण्डं कम्माणं ठिदिबंधो संखेज्जगुणो । मोहणीयट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ । केत्तियमेण १ विभागमेत्तरेण । एवमेस कमो ताव णेदव्वो जाव सेसकम्माणं पलिदोवमट्ठिदिगो बंधो ण पत्तो त्ति जाणावणट्ठमुत्तरसुत्तमोइण्णं-
* तदो पहुडि गामा-गोदाणं द्विदिगंध पुराणे संखेज्जगुणहीणो हिदिगंधो होइ, सेसाणं कम्माणं जाव पलिदोवमट्ठिदिगं गंधं ण पावदि ताव पुण्णे द्विदिगंधे पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागहीणो द्विदिबंधो
$ ८८, गयत्थमेदं सुत्तं ।
जानेपर वहाँसे लेकर संख्यात भागोंका स्थितिबन्धापसरण होता है यह नियम देखा जाता है ।
* शेष कर्मोंका स्थितिबन्ध पल्योपमका संख्यातवाँ भाग हीन होता है ।
$ ८७. परन्तु तब ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय और अन्तराय इन शेष कर्मोंका स्थितिबन्ध पूर्वके स्थितिबन्धसे पल्योपमका संख्यातवाँ भाग हीन ही होता है, क्योंकि उनका अभी भी पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध नहीं प्राप्त हुआ है । उस समय अल्पबहुत्व इसप्रकार होता है— नामकर्म और गोत्रकर्मका स्थितिबन्ध सबसे अल्प होता है । उसे चार कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यातगुणा होता है तथा उससे मोहनीयकर्मका स्थितिबन्ध विशेष अधिक होता है। कितना अधिक होता है ? त्रिभाग अधिक होता है । इस प्रकार स्थितिबन्धका यह क्रम तब तक चलाना चाहिए जब तक शेष कर्मोंका स्थितिबन्ध पल्योपमप्रमाण नहीं प्राप्त होता है इस प्रकार इस बातका ज्ञान करानेके लिये आगेका सूत्र आया है
* यहाँसे लेकर नामकर्म और गोत्रकर्मके स्थितिबन्धके पूर्ण होनेपर संख्यातगुणा to अन्य स्थितिबन्ध होता है तथा शेष कर्मोंका जबतक पल्योपमस्थितिवाला बंध नहीं प्राप्त करता है तब तक एक स्थितिबन्धके पूर्ण होनेपर पल्योपमका संख्यातवाँ भाग हीन दूसरा स्थितिबंध होता है ।
९ ८८. यह सूत्र गतार्थ है ।
१. ता. प्रतौ भागहीणो [ द्विदिबंधों ।] ताधे इति पाठः । २. ता. प्रती णाणावरण वेदणीय इति पाठः ।