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गाथा १२३ ]
चरितमोहणीय-उवसामणाए करणकज्जणिद्देसो
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चैव विदिबंधो, तं चैवाणुभागखंडयं, सा चैव गुणसेढी । णवरि असंखेज गुणपदेसविण्णासोवचिदा गलिदसेसायामा च । विसोही च अनंतगुणा । एवं णेदव्वं जाव अणुभागखंडयस हस्सेसु गदेसु पढमट्ठिदिखंडय -ट्ठिदिबंधकालो अण्णो अणुभागखंडयकालो च जुगवं णिट्ठिदा त्ति । संपहि एदिस्सेव संधिविसेसस्स फुडीकरणमुत्तरसुत्तमवहणं
* तदो अणुभागखंडयपुधत्ते गदे अण्णमणुभागखंडयं पढमं द्विदिखंडयं जो च अपुव्वकरणस्स पढमो द्विदिबंधो एदाणि समगं णिडिदाणि ।
$ ६२. गयत्थमेदं सुत्तं । णवरि अणुभागखंडयपुधत्तणिसो जेणेत्थ वइपुल्लवाचओ तेणाणुभागखंडय सहस्सपुधत्ते गदे त्ति घेत्तव्वं, एयट्ठिदिबंधकालब्भंतरे संखेजसहस्समेत्ताणमणुभागखंडयाणमुवलंभादो । एवमेदेण कमेण संखेज्जसहस्सो सु ट्ठिदिखंडएस ट्ठिदिबंधसमाणपारंभपज्जवसाणेसु पादेकमणुभागखंडय सहस्साविणाभावोसु गदेसु अपुव्यकरणद्धाए पढमसत्तमभागस्स चरिमसमए वट्टमाणस्स जो विसेस संभवो तदवबोहणमुत्तरसुत्तावयारो --
* तदो ट्ठिदिखंडयपुधत्ते गदे णिद्दा- पयलाणं बंधवोच्छेदो ।
अनुभागकाण्डक होता है और वही गुणश्रेणि होती है । इतनी विशेषता है कि वह प्रति समय असंख्यातगुणे प्रदेशविन्यास से उपचित और गलितशेष आयामवाली होती है । तथा विशुद्धि भी प्रति समय अनन्तगुणी होती है। इस प्रकार हजारों अनुभागकाण्डकोंके व्यतीत होनेपर प्रथम स्थितिकाण्डक, स्थितिबन्धकाल और अन्य अनुभागकाण्डककाल एक साथ समाप्त होते हैं। अब इसी सन्धिविशेषका स्पष्टीकरण करनेके लिये आगेके सूत्रका अवतार हुआ है
* तत्पश्चात् अनुभागकाण्डकपृथक्त्वके व्यतीत होनेपर अन्य अनुभागकाण्डक, प्रथम स्थितिकाण्डक और जो अपूर्वकरणका प्रथम स्थितिबन्ध है उस सहित ये एक साथ समाप्त होते हैं ।
$ ६२. यह सूत्र गतार्थ है । इतनी विशेषता है कि यतः यहाँपर अनुभागकाण्डक पृथक्त्वका निर्देश विपुलतावाची है, इसलिये हजारपृथक्त्व अनुभाग काण्डकके व्यतीत होनेपर ऐसा यहाँपर ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि एक स्थितिबन्ध - कालके भीतर संख्यात हजार अनुभागकाण्डक उपलब्ध होते हैं। इस प्रकार इस क्रमसे जो प्रत्येक स्थितिकाण्डक हजारों अनुभागकाण्डकोंका अविनाभावी है तथा जिसमें से प्रत्येकका स्थितिबन्ध के समान प्रारम्भ और पर्यवसान है ऐसे संख्यात हजार स्थितिकाण्डकोंके व्यतीत होनेपर अपूर्वकरणके प्रथम सातवें भाग के अन्तिम समय में विद्यमान जीवके जो विशेष सम्भव है उसका ज्ञान करानेके लिये आगेके सूत्रका अवतार हुआ है
* तत्पश्चात् स्थितिकाण्डक - पृथक्त्वके व्यतीत होनेपर निद्रा और प्रचला प्रकृतियोंका बन्धविच्छेद होता है ।