________________
२२४
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ चरित्तमोहणीय-उवसामणा संखेजदिभागो चेव, णत्थि तत्थ अण्णो वियप्पो त्ति भणिदं होइ । संपहि एत्थेवाणुभागखंडयपमाणावहारणमिदमाह
* असुभाणं कम्माणमणंसा भागा अणुभागखंडयं ।
६५९. सगममेदं सुतं । संपहि अपुवकरणपढमसमयविसयाणं द्विदिबंधट्ठिदिसंतकम्माणं पमाणावहारणट्ठमुत्तरसत्तं भणइ
* ठिदिसंतकम्ममंतोकोडाकोडीए द्विदिबंधो वि अंतोकोडाकोडीए ।
६०. कुदो ? एत्तो उवरिमट्ठिदिबंधसंताणमेदम्मि विसये संभवाभावादो । संपहि एत्थेव गुणसेढिणिक्खेवपमाणपरूवणद्वमुत्तरसुत्तमाह
* गुणसेढी च अंतोमहुत्तमेत्ता णिक्खित्ता।
६१. अपुव्वकरणपढमसमए उवरिमसेसहिदीणं पदेसग्गमोकट्टियूण उदयावलियबाहिरे अंतोमुहुत्तायामेण गुणसेढिणिक्खेवमेसो करेदि त्ति वुत्तं होइ । सो वुण अंतोमुहुत्तायामो अपुव्वकरणद्धादो अणियट्टिकरणद्धादो च विसेसाहिओ । एत्थेव गुणसंकमो वि, णqसय वेदादिपयडीणमप्पसत्थाणमबज्झमाणाणमाढविजदि ति वक्खाणेयव्वं । एवमपुव्यकरणपढमसमएण सा सव्वा परूवणा विदियसमए वि । तं चेव ठिदिखंडयं सो विकल्प नहीं है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। अब यहीं पर अनुभागकाण्डकके प्रमाणका अवधारण करनेके लिये इस सूत्रको कहते हैं
* अनुभागकाण्डक अशुभ कर्मोंके अनन्त बहुभागप्रमाण होता है ।
$ ५९. यह सूत्र सुगम है। अब अपूर्वकरणके प्रथम समयमें प्राप्त होनेवाले स्थितिबन्ध और स्थितिसत्कर्म के प्रमाणका अवधारण करनेके लिये आगेके सूत्रको कहते हैं
* स्थितिसत्कर्म अन्तःकोड़ाकोड़ीके भीतर होता है और स्थितिबन्ध भी अन्त:कोडाकोड़ीके भीतर होता है। .
६०. क्योंकि इस स्थानपर इससे अधिक स्थितिबन्ध और स्थितिसत्कर्म सम्भव नहीं है। अब यहीं पर गुणश्रेणिनिक्षेपके प्रमाणका अवधारण करनेके लिये आगेके सूत्रको कहते हैं
* तथा गुणश्रेणि अन्तर्मुहूत आयामवाली निक्षिप्त करता है।
६१. यह जीव अपूर्वकरणके प्रथमसमयमें उपरिम स्थितियोंसे प्रदेशपुञ्जका अपकर्षण कर उदयावलिके बाहर अन्तर्मुहूर्त आयामरूपसे गुणश्रेणिका निक्षेप करता है। किन्तु वह अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आयाम अपूर्वकरणके कालसे और अनिवृत्तिकरणके कालसे विशेष अधिक होता है। तथा यहीं पर नहीं बँधनेवाली नपुंसकवेद आदि अप्रशस्त प्रकृतियों सम्बन्धी गुणसंक्रमका भी प्रारम्भ करता है इसका व्याख्यान करना चाहिए। इस प्रकार अपूर्वकरणके प्रथम सभय द्वारा जो कार्यविशेष प्रारम्भ होते हैं वह सब कथन दूसरे समयमें भी जानना चाहिए। उस समयमें भी वही स्थितिकाण्डक होता है, वही स्थितिबन्ध होता है, वही
१ ता०प्रती असंखेज्जदिभागो इति पाठः ।