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गाथा १२३ ] चरित्तमोहणीय-उवसामणाए पट्ठवणगाहासुत्ताणि
२१५ ४२. एसा पढमगाहा त्ति जाणावणट्ठमेत्थ एगंकविण्णासो कओ। कथमेत्थ गाहाए एगदेसणिसेण सयलगाहासुत्तपडिवत्ति ति णासंकणिज्जं, देसामासयभावेण एदस्स गाहापढमपादस्स सयलगाहापरामरसयभावेण पवुत्तिदंसणादो। तदो सयलगाहा एत्थ उच्चारिय गेण्हियव्वा । आद्यन्तनिर्देशाद्वा सिद्धं, सर्वत्रागमिकानामाद्यन्तनिर्देशव्यवहारस्य सुप्रसिद्धत्वात् ।
* काणि वा पुव्वबद्धाणि ॥२॥
४३. एसा विदियगाहा त्ति जाणावणट्ठमेत्थ दोअंकविण्णासो चुण्णिसुत्तयारेण कओ। एत्थ वि पुव्वं व गाहेयदेसणिदेसेण सयलगाहापडिवत्ती वक्खाणेयव्वा ।
* 'के अंसे झीयदे० ॥ ३ ॥
४४. एसा तइजा गाहा त्ति जाणावणट्ठमिह तिहमंकविण्णासो। तदो एत्थ वि पुव्वुत्तेणेव णायेण सयलगाहापडिवत्ती दट्ठव्वा ।।
..$ ४२. यह प्रथम गाथा है इस बातका ज्ञान करानेकेलिये यहाँ एक अंकका विन्यास किया है।
शंका-यहाँ पर गाथाके एकदेशके विन्यास द्वारा पूरे गाथासूत्रकी प्रतिपत्ति कैसे हो सकती है ?
समाधान-ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि देशामर्षकरूपसे गाथाके इस प्रथम पादकी पूरे गाथासूत्रके परामर्शरूपसे प्रवृत्ति देखी जाती है। इसलिए यहाँ पर पूरे गाथा सूत्रका उच्चारण कर उसे ग्रहण करना चाहिए । अथवा गाथाके आदि और अन्तका निर्देश करनेसे पूरे सूत्रका उच्चारण सिद्ध हो जाता है, क्योंकि सर्वत्र आगमिकोंमें आदि अन्तके निर्देश करनेका व्यवहार सुप्रसिद्ध है।
___ * कषायोंका उपशम करनेवाले जीवके पूर्वबद्ध कर्म कौन-कौन हैं, वर्तमानमें किन कर्मांशोंको बाँधता है, कितने कर्म उदयावलिमें प्रवेश करते हैं और यह किन कर्मोंका प्रवेशक होता है ॥२॥
$ ४३. यह दूसरी गाथा है इसका ज्ञान करानेके लिए चूर्णिसूत्रकारने यहाँ दो अंकका विन्यास किया है । यहाँ पर भी पहलेके समान गाथाके एकदेशके निर्देशद्वारा सम्पूर्ण गाथाकी प्रतिपत्तिका व्याख्यान करना चाहिए।
___ * कषायोंके उपशम करनेके सन्मुख होनेके पूर्व ही बन्ध और उदयरूपसे किन प्रकृतियोंकी बन्धव्युच्छित्ति हो जाती है। आगे चलकर अन्तरको कहाँ पर करता है और कहाँ पर किन-किन कर्मोंका उपशामक होता है ॥३॥
४४. यह तीसरी गाथा है इसका ज्ञान करानेके लिये यहाँ पर तीन अंकका विन्यास किया है। इसलिये यहाँ पर भी पूर्वोक्त न्यायसे ही सम्पूर्ण गाथाकी प्रतिपत्ति कर लेनी चाहिए।