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गाथा १२३ ]
अणंताणुबंधिविसंजोयणा $ ३२. कुदो ? सत्थाणे पदिदस्स वड्डि-हाणि-अवट्ठाणेसु संकिलेस-विसोहिवसेण संचरणं पडि विरोहाभावादो।
* तहा चेव ताव उवसंतदसणमोहणिज्जो असाद-अरदि-सोग-अजसगित्तिआदीसु बंधपरावत्तसहस्साणि कादूण ।
३३. जहा अणंताणुबंधी विसंजोएदूण सत्थाणे पदिदो असादादिबंधपाओग्गो होदि एवमेसो वि उवसंतदंसणमोहणिजो होदूण विसोहिकालं बोलिय पमत्तापमत्तगुणेसु परावत्तमाणो असादारइ-सोग-अजसगित्तिआदीणमसुहपयडीणं बंधगो होदूण तब्बंधपरावत्तसहस्साणि कुणमाणो अंतोमुहुत्तं विस्समिय तदो उवसमसेढिपाओग्गविसोहीए अहिमुहो होदि त्ति सुत्तत्थसंगहो ।
$ ३२. क्योंकि स्वस्थानको प्राप्त हुए जीवके संक्लेश और विशुद्धिवश परिणामोंके वृद्धि, हानि और अवस्थानमें संचरणके प्रति विरोधका अभाव है।
विशेषार्थ-आशय यह है कि जब तक उक्त जीव स्वस्थान संयत बना रहता है तब तक जब विशुद्धिको प्राप्त होता है तब परिणामोंमें वृद्धि होती है, जब संक्लेशको प्राप्त होता है तब परिणामोंमें हानि होती है और जब पिछले समयके समान संक्लेश या विशुद्धि बनी रहती है तब परिणामोंमें भी अवस्थितपना बना रहता है।
* तबसे उसीप्रकार उपशान्तदर्शन मोहनीय जीव असातावेदनीय, अरति, शोक और अयश कीर्ति आदि प्रकृतियोंसम्बन्धी हजारों बन्धपरावर्तन करके।
$३३. जिस प्रकार अनन्तानुबन्धियोंकी विसंयोजना करके स्वस्थानको प्राप्त हुआ उक्त जीव असातावेदनीय आदिके बन्धके योग्य होता है उसी प्रकार यह भी उपशान्तदर्शनमोहनीय हो विशुद्धि कालको विताकर प्रमत्त और अप्रमत्तगुणस्थानोंमें परावर्तन करता हुआ असातावेदनीय, अरति, शोक और अयशःकीर्ति आदि अशुभ प्रकृतियोंका बन्धक होकर उनके हजारों बन्धपरावर्तन करता हुआ अन्तर्मुहूर्त काल तक विश्राम करके तत्पश्चात् उपशमश्रेणिके योग्य विशुद्धिके अभिमुख होता है यह सूत्रार्थसंग्रह है।
विशेषार्थ-जब एकान्त विशुद्धिकी वृद्धिका काल समाप्त होकर यह जीव स्वस्थानेसंयत हो जाता है तब यह जीव प्रमत्त और अप्रमत्त गुणस्थानों में परावर्तन करता हुआ प्रमत्त गुणस्थानसम्बन्धी जब संक्लेशरूप परिणाम होते हैं तब असातावेदनीय आदि अप्रशस्त प्रकृतियोंका बन्ध करने लगता है। स्वस्थान संयत इस कालके भीतर इन प्रकृतियों का इस प्रकार हजारों बार बन्ध करता है। यह विश्राम काल है जो समुच्चयरूपसे अन्तमुहूर्तप्रमाण है। पुनः इस कालके व्यतीत होनेके बाद यह जीव उपशमणिके योग्य विशुद्धिको नियमसे प्राप्त करता है यह उक्त सूत्रका तात्पर्य है।
* तत्पश्चात् कषायोंको उपशमानेके लिये अधःप्रवृत्तकरणसम्बन्धी परिणामरूप परिणमता है।