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गाथा १२३ ]
दंसमोहणीय-उवसामणाणिद्देसो तदो पढमहिदीए चरिमसमये अणियट्टिकरणद्वा समप्पइ । से काले पढमसम्मत्तमुप्पाइय सम्माइट्ठी जायदे ।
६२९ संपहि जहा पढमसम्मत्ते उप्पाइदे सम्माइद्विपढमसमयप्पहाडि जाव अंतोमुहुत्तमेत्तकालं मिच्छत्तस्स गुणसंकमसंभवो किमेदमेवमेत्थ वि संभवो आहो पत्थि त्ति आसंकाए णिरारेगीकरणट्ठमुत्तरसुत्तावयारो
* सम्मत्तस्स पढमहिदीए झीणाए जं तं मिच्छत्तस्स पदेसग्गं सम्मत्त-सम्मामिच्छतेसु गुणसंकमेण संकमदि जहा पढमदाए सम्मत्तमुप्पाएंतस्त तहा एत्थ णत्थि गुणसंकमो, इमस्स विज्झादशंकमो नेव।।
३०. किं पुण कारणमेत्थ गुणसंकमो पन्थि त्ति चे ? सहावा चेव, जीव
या। इसप्रकार सक्षम
प्रमत्तसंयत होकर
अ
पनः दर्शनमानायका
अधिक प्रत्यावलिके शेष रहनेपर सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिकी उदीरणा होती है। पश्चात् प्रथम स्थिति के अन्तिम समयमें अनिवृत्तिकरणकाल समाप्त होकर तदनन्तर समयमें प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न कर सम्बग्दृष्टि हो जाता है।
विशेपार्थ-यहाँपर वेदकसम्यग्दृष्टि संयत उपशमश्रेणिपर आरोहणके योग्य कब होता है इस तथ्यका विचार करते हुए बतलाया है कि ऐसा जीव सर्वप्रथम अजन्तानु रन्धी. चतुष्क की विसं योजना करने के लिए अधःप्रवृत्त आदि तीन करण करता है। यहाँ अन्य व विधि दर्शनमोहकी उपशामनाके समान है। मात्र इस जीवके अनिवृत्तिकरणमें अन्तर करण नहीं होता। इसप्रकार संक्षेपमें यह अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजनाका प्रकार है। इसके बाद अन्तर्मुहूर्त कालतक विश्राम करते हुए प्रमत्तसंयत होकर असातावेदनीय, अरति, शोक और अयशःकीर्ति आदि प्रकृतियोंका अन्तर्मुहूर्त कालतक बन्ध करता है। पुनः दर्शनमोहनीयका उपशम करता है । यतः यह वेदकसम्यग्दृष्टि है अतः इसके एक तो वेदक सम्यक्त्वके कालतक यथायोग्य सम्यक्त्व प्रकृतिका ही उदय-उदीरणा होती रहती है, दूसरे इसके दर्शनमाहनीय की किसी प्रकृतिका बन्ध नहीं होता। ये दो विशेषताएं हैं जिनको ध्यानमें रखकर यहाँ दर्शनमोहनीयका उत्कर्षण, अपकर्षण संक्रमण आदिकी प्रक्रिया समझ लेनी चाहिए । विस्तारसे इस विधिका कथन मूलमें किया ही है।
२९. अब प्रथम सम्यक्त्वके उत्पन्न करने पर सम्यग्दृष्टि के प्रथम समयसे लेकर जिस प्रकार अन्तर्मुहूर्त काल तक मिथ्यात्वका गुणसंक्रम होता है क्या इस प्रकार यहाँ पर भी वह सम्भव है या सम्भव नहीं है ऐसी आशंका होने पर निःशंक करने के लिये आगेके सूत्रका अवतार करते हैं
* सम्यक्त्वकी प्रथम स्थितिके क्षीण होने पर जो मिथ्यात्वका प्रदेशपुञ्ज है उसका सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वमें गुणसंक्रमसे संक्रम जिस प्रकार प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करनेवाले जीवके होता है उस प्रकार यहाँ पर गुणसंक्रम नहीं होता, विध्यातसंक्रम ही होता है ।
$३०. शंका-यहाँ पर गुणसंक्रम नहीं होता इसका क्या कारण है ? समाधान-स्वभावसे ही यहाँ गुणसंक्रम नहीं होता । अथवा संक्रमादिके कारणभूत