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गाथा १२३ ] अणंताणुबंधिविसंयोजणाणिहेसो
२०१ द्विदिखंडयचरिमफालिसरूवेण सेसबज्झमाणकसाय-णोकसाएसु संकामिय पयदं किरियं समाणेदि त्ति एसो एदस्स सुत्तस्स भावत्थो।
* एसा ताव जो अणंताणुबंधी विसंजोएदि तस्स समासपरूवणा।
२१. सुगममेदं पयदत्थोवसंहारवक्कं । एवगणंताणुबंधिविसंजोयणमुव संहरिय सत्थाणे पदिदो अंतोमुहुत्त विस्समियूण किरियंतरमाढवेदि त्ति जाणावणमुत्तरसुत्तावयारो
___ * तदो अणंताणुबंधी विसंजोइदे अंतोमुहुत्तमधापवत्तो जादो असादअरदि-सोग अजसगित्तियादीणि ताव कम्माणि बंधदि ।
। ६२२. अणंताणुवंधिविसंजोयणकिरियासत्तिसमणंतरमेव किरियंतरं गाढवेइ । किंतु अणंताणुबंधी विसंजोइय अंतोमुहुत्तं सत्थाणसंजदो होदण तत्थ संकिलेसविसोहिवसेण पमत्तापमत्तगुणेसु परिपत्तमागो- असाद-अरइ-सोग अजसगितिआदिपयडीओ पुव्वं करणविसोहिपाहम्मेण अबज्झमाणाओ ताव केत्तियं पि कालं बंधमाणो विस्समिदो त्ति एसो एदस्स सुत्तस्स भावत्थो। एत्थादिसद्देण संकिलिस्समाणसंजदबंधपाओग्गाणमथिर-असुहाणं गहणं कायव्वं, छण्हमेदासि पयडीणं बंधस्स संकिलेअन्तिम समयमें पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण आयामवाले अन्तिम स्थितिकाण्डक सम्बन्धी अन्तिम फालिरूपसे बध्यमान शेष कषायों और नोकषायोंमें संक्रमित कर प्रकृत क्रिया को समाप्त करता है यह इस सूत्रका भावार्थ है।
* जो उक्त जीव सर्व प्रथम अनन्तानुवन्धियोंकी विसंयोजना करता है उसकी यह संक्षेपमें प्ररूपणा है।
२१. प्रकृत अर्थका उपसंहार करनेवाला यह वचन सुगम है। इस प्रकार अनन्तानुबन्धियोंकी विसंयोजनाका उपसंहार करके स्वस्थानमें आया हुआ उक्त संयत अन्तर्मुहूर्त कालतक विश्राम करके दूसरी क्रियाका आरम्भ करता है इसका ज्ञान करानेके लिये आगेके सूत्रका अवतार करते हैं
* इस प्रकार अनन्तानुबन्धियोंकी विसंयोजना करनेके बाद अन्तर्मुहूर्त काल तक अधःप्रवृत्तसंयत होता हुआ असातावेदनीय, अरति, शोक और अयश कीर्ति आदि का बन्ध करता है।
$ २२. अनन्तानुबन्धियोंकी विसंयोजनारूप क्रियाशक्तिके समाप्त होनेके बाद ही दूसरी क्रियाका आरम्भ नहीं करता है। किन्तु अनन्तानुबन्धियोंकी विसंयोजना करके अन्तर्मुहूर्त कालतक स्वस्थान संयत होकर वहाँ संक्लेश और विशुद्धिवश प्रमत्त और अप्रमत्त गुणस्थानोंमें परिवर्तन करता हुआ असातावेदनीय, अरति, शोक और अयशःकीर्ति आदि प्रकृतियोंको, पहले करणरूप विशुद्धि के माहात्म्यवश नहीं बाँधता रहा, किन्तु अब कितने ही काल तक बन्ध करता हुआ विश्राम करता है यह इस सूत्रका भावार्थ है । यहाँ पर सूत्रमें आये हुए 'आदि' शब्दसे संक्लेशको प्राप्त होनेवाले संयतके बन्धके योग्य अस्थिर
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