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जयधवलास हिदे कसायपाहुडे [ चरित्तमोहणीय - उवसामणा वोच्छेदावोच्छेदाणं चेव णिण्णयकरणादो । सेसासेसविसेसणिण्णयमुवरि सुत्तसंबंधमेव कस्साम । एवमेदाओ चत्तारि सुत्तगाहाओ उवसामगपरूवणाए पडिबद्धाओ । उवरिमचत्तारि गाहाओ तस्सेव पडिवादपदुप्पायणे पडिबद्धाओ । तं जहा
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(६७) पडिवादो च कदिविधो कम्हि कसायम्हि होइ पडिवदिदो ।
केसिं कम्मंसाणं पडिवदिदो बंधगो होइ ॥ १२०॥
$ ७. एसा सव्वा विगाहा पुच्छासुतं । तत्थ 'पडिवादो च कदिविधो' त्ति एसो पढमावयवो पडिवादभेदणिद्दे समुवेक्खदे | 'कम्हि कसायम्हि होइ पडिवदिदो' एसो वि विदियावयवो सव्वोवसामणादो पडिवदमाणगो पढमं कदमम्मि कसाये पडिवददि, किमविसेसेण, आहो अत्थि को वि बादर - सुहुमादिकसायगओ विसेसो ति एवंविहस्स अत्थविसेसस्स पुच्छामुहेण णिण्णयकरणङ्कं पवत्तो । पडिवदमाणस्स पयडिबंधपरिवाडीए पुच्छामुहेण णिच्छयकरणङ्कं गाहा पच्छद्धमोइणमिदि । एवमेत्थ तिणि पुच्छाओ पडिबद्धाओ । संपहि एवमेदीए गाहाए पुच्छिदत्थविसये जहाकमं णिण्णयविहाणट्ट मुवरिमाणं तिण्डं गाहासुत्ताणमवयारो
(६८) दुविहो खलु पडिवादो भवक्खयादुवसमक्खयादो दु । सुमे च संपराए बादररागे च बोद्धव्वा ॥ १२१ ॥
उक्त गाथासूत्र के पूर्वार्ध और उत्तरार्ध द्वारा करणोंके विच्छेद और अविच्छेदका ही निर्णय किया गया है । शेष समस्त विशेषोंका निर्णय आगे सूत्रके सम्बन्धको ध्यान में रखकर ही करेंगे। इस प्रकार ये चार सूत्रगाथाऐं उपशामकसम्बन्धी प्ररूपणा में ही प्रतिबद्ध हैं । तथा उपरिम चार गाथाऐं उसीके प्रतिपातके कथनमें प्रतिबद्ध हैं । यथा
चारित्रमोहनी के उपशामकका प्रतिपात कितने प्रकारका होता है, वह सर्वप्रथम किस कषाय में प्रतिपतित होता है तथा गिरता हुआ किन कर्मप्रकृतियोंका बंधक होता है १ ।। १२० ।।
१७. यह पूरी गाथा पृच्छासूत्र है। उसमें 'पडिवादो च कदिविधो' यह पहला चरण प्रतिपातके भेदों की अपेक्षा करता है । 'कम्हि कसायम्हि होइ पडिवदिदो' यह दूसरा चरण भी सर्वोपशामना से गिरनेवाला जीव पहले किस कषायमें गिरता है, क्या विशेषता के बिना गिरता है या बादर- सूक्ष्म आदि कषायगत कोई भी विशेषता है इस प्रकार इस तरह के अर्थ विशेषका पृच्छाद्वारा निर्णय करनेके लिये प्रवृत्त हुआ है। तथा गिरनेवाले जीवके प्रकृतिबन्धके क्रमानुसार पृच्छा द्वारा निश्चय करनेके लिये गाथा का उत्तरार्ध आया है । इस प्रकार इस गाथा सूत्रमें तीन पृच्छाऐं प्रतिबद्ध हैं । अब इस प्रकार इस गाथा द्वारा पूछे गये अर्थके विषय में यथाक्रम निर्णय करनेके लिये आगेके तीन गाथासूत्रोंका अवतार हुआ है
भवक्षय और उपशमक्षयके भेदसे प्रतिपात नियमसे दो प्रकारका है । वह प्रतिपात भवभय से बादररागमें और उपशमक्षय से सूक्ष्मसाम्पराय में जानना चाहिए ।। १२१ ।।