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गाथा ११९] चरित्तमोहणीय-उवसामणाए गाहासुत्तणिहेसो
१९३ मुवेक्खदे एसा पुच्छा। तदो वत्तव्वं अंतोमुहुत्तेणे त्ति, अंतोमुहुत्तेण कालेण विणा णवंसयवेदादिपयडीणमुवसामणकिरियाए अपरिसमत्तीदो । तिस्से चेव उवसामिजमाणपयडीए 'संकमणमुदीरणा च केवचिरं' कालं पयदि त्ति एसा वि पुच्छा कालविसेसमेव जोएदि । एदिस्से पुच्छाए णिण्णयमुवरि कस्सामो । 'केवचिरं उवसंतं एवं भणिदे णQसयवेदादिकम्ममुवसंतं होदण केवचिरं कालमवचिट्ठइ, किमेगसमयमाहो अंतोमुहत्तादिकालं । अथवा सव्वमेव चरित्तमोहणीयं सव्वोवसामणाए उवसंतं होदण केत्तियं कालमवचिट्ठदि त्ति एसा वि पुच्छा उत्रसंतावत्थाए कालविसेसमुवेक्खदे। तदो वत्तव्वं जहण्णेण एयसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तमिदि । 'अणवसंतं च केवचिरं एसा वि पुच्छा अप्पसत्थोवसामणाए अणुवसंतावस्थाए कालणिदेसमुवेक्खदे । एदस्स णिण्णयमुवरि चुण्णिसुत्तसंबंधेण कस्सामो ति ह तप्पवंचो कीरदे । (६६) कं करणं वोच्छिन्नदि अव्वोच्छिण्णं च होइ कं करणं ।
के करणं उवसंतं' अणउवसंतं च कं करणं ॥११६॥
६. एसा चउत्थी मूलगाहा मूलुत्तरपयडीणमप्पसत्थोवसामणादिअट्ठकरणेसु उवसामगस्स कदमम्मि अवत्थाविसेसे 'कं करणं वोच्छिज्जदि', ण वोच्छिज्जदि त्ति एवं विहस्सर अस्थविसेसस्स पुच्छामुहेण णिच्छयविहाणदुमवइण्णा, पव्व-पच्छद्धेहिं करणकाल द्वारा उपशमाता है, क्योंकि अन्तर्मुहूर्त कालके विना नपुंसक वेद आदि प्रकृतियोंकी उपशामनक्रिया समाप्त नहीं होती। तथा उपशमित होनेवाली उसी प्रकृतिका संक्रमण और उदीरणा कितने काल तक प्रवृत रहती है इस प्रकार यह पृच्छा भी काल विशेषको स्वीकार करती है। इस पृच्छाका निर्णय आगे करेंगे। 'केवचिरं उवसंतं' ऐसा कहने पर नपुंसकवेद आदि कर्म उपशान्त होकर कितने कालतक ठहरते हैं ? क्या एक समय तक या अन्तर्मुहूर्त कालतक ? अथवा समस्त चारित्रमोहनीयकर्म सर्वोपशामनाद्वारा उपशान्त होकर कितने काल तक ठहरता है ? इसलिए कहना चाहिए कि समस्त चारित्रमोहनीय कर्म जघन्यसे एक समय तक और उत्कृष्टसे अन्तर्मुहूर्त कालतक उपशान्त रहता है । 'अणुवसंत' यह पृच्छा भी अप्रशस्त उपशामनाके अनुपशान्त अवस्थाके कालका निर्देशकी अपेक्षा करती है। इसका निर्णय ऊपर चूर्णिसूत्रके सम्बन्धसे करेंगे, इसलिए उसका विस्तार यहाँ नहीं करते हैं।
उपशामककी किस अवस्थामें कौन करण व्युच्छिन्न हो जाता है और कौन करण अव्युच्छिन्न रहता है । तथा कौन करण उपशान्त रहता है और कौन करण अनुपशान्त रहता है ॥११९॥
$६. यह चौथी मलगाथा मूल और उत्तर प्रकृतियोंके अप्रशस्त उपशामना आदि आठ करणोंमेंसे उपशामकके किस अवस्थामें कौन करण व्युच्छिन्न रहता है या व्युच्छिन्न नहीं रहता है इस प्रकार इस तरहके अर्थ विशेषका पृच्छाद्वारा निर्णय करनेके लिये आई है, क्योंकि
१ ता०प्रती के उवसंतं करणं इति पाठः । २ ता०प्रतौ कं करणं वोच्छिज्जदि त्ति एवंविहस्स इति पाठः ।
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