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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [चरित्तमोहणीय-उवसामणा * चरित्तमोहणीयस्स उवसामणाए पुव्वं गमणिन्न सुत्तं ।
१. दंसणमोहणीयस्स उवसामणा खवणा च पुव्वं परूविदा, चरित्तमोहणीयस्स वि खयोवसमलद्धिलक्खणा देसोवसामणा संजमासंजम-संजम-लद्धिभेदेण दुविहा विहत्ता अणंतरमेव विहासिदा । संपहि चरित्तमोहणीयस्स सव्वोवसामणा विहाणपरूवणट्ठमेसो चोदसमो अत्थाहियारो चरित्तमोहोवसामणासण्णिदो समोइण्णो। एवमवहारिदसंबंधस्सेदस्स अस्थाहियारस्स परूवणाए पुव्वमेव ताव सुत्तमणुगंतव्वं, अण्णहा सुत्ताणुसारीणमेत्थाणादरप्पसंगादो, सुत्तावलंबणेण विणा पयदपरूवणाए णिव्वहणाणुववत्तीदी चेदि एसो एदस्स सुत्तस्स समुदायत्थो। एत्थ य अट्ठ गाहामुत्ताणि होति । कुदो एवं परिच्छिन्जदे ? 'अट्ठय्वसामणद्धम्मि' इदि संबंधगाहावयवेण तहोवइद्वत्तादो। तदो तेसिमवसरकरणटुं पुच्छावकमाह
* तं जहा।
२. सुगममेदं पुच्छावकं । एवं च पुच्छाविसईकयाणमट्ठण्हं गाहासुत्ताणं जहाकममसो सरूवणिद्देसो
* चारित्रमोहनीय-उपशामक नामक अनुयोगद्वारमें सर्व प्रथम गाथासूत्र ज्ञातव्य है।
१. दर्शनमोहनीय उपशामना और क्षपणाका पहले कथन किया तथा चारित्रमोहनीय की क्षयोपशमलब्धि लक्षणवाली संयमासंयम और संयमलब्धिके भेदसे दो प्रकारकी देशोपशामनाका भी अनन्तर पूर्व ही व्याख्यान किया। अब चारित्रमोहनीय-सर्वोपशामनाका कथन करनेके लिये चारित्रमोहोपशामना संज्ञावाला यह चौदहवाँ अर्थाधिकार अवतीर्ण हुआ है। इस प्रकार जिसके सम्बन्धका निश्चय किया है ऐसे इस अर्थाधिकारकी प्ररूपणामें पूर्व ही सर्व प्रथम गाथासूत्र जानने योग्य है, अन्यथा सूत्रानुसारी शिष्योंको इसमें आदर ब होनेका प्रसंग आता है तथा गाथासूत्रोंका अवलम्बन लिये बिना प्रकृत प्ररूपणाका निर्वाह नहीं हो सकता यह इस सूत्रका समुच्चयरूप अर्थ है । यहाँ आठ गाथासूत्र हैं ।
शंका-यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान-'अटेवुवसामणद्धम्मि' इस सम्बन्ध गाथाके एक पाद द्वारा उसी प्रकारका उपदेश पाया जाता है । इसलिए ज्ञात होता है कि इस अनुयोगद्वारमें आठ ही गाथासूत्र हैं।
इसलिए उनका अवसर करनेके लिये पृच्छावाक्यको कहते हैं* वह जैसे।
६२. यह पृच्छावाक्य सुगम है। इस प्रकार पृच्छाके विषय किये गये गाथासूत्रोंका यथाक्रम यह स्वरूप निर्देश है