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सिरि- जइवसहाइरियविरहय- चुण्णिसुतसमणिदं
सिरि-भगवंतगुरणहरभडारनोवइट्ठ
कसाय पाहुड
सिरि-वीरसेाइरियविरइया टीका
जयधवला
तस्स
तत्य
चरितमोहणीय - उवसामणा णाम चोदसमो अत्थाहियारो
उवसमिदसयलदोसे उवसामए पणमिउं
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उवसंतकसायवीयरायंते । कसायउवसामणं वोच्छं ॥१॥
जिन्होंने समस्त दोषोंको उपशान्त कर लिया है ऐसे उपशान्त कषाय वीतराग पर्यन्त समस्त उपशामकों को नमस्कार कर कषाय-उपशामक नामक अनुयोगद्वारका कथन करेंगे ॥१॥