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गाथा ११५ ]
संजमट्ठाणा अप्पाबहुअं
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* लद्धिट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि ।
४२. किं कारणं १ पडिवादट्ठाणाणि उप्पादयद्वाणाणि पुणो एत्तो असंखेजगुण पडिवादापडिवजमाणट्टाणाणि च विसाईकरिय एदेसिं पवृत्तिदंसणादो । तदो सिद्धमेदे सिमसंखे जगुणत्तं । गुणगारो च असंखेज्जा लोगा ।
$ ४३. अथवा एदमप्पाबहुअमेवं कायव्वं । सव्वत्थोवाणि पडिवादट्ठाणाणि । पडिवज्जट्ठाणाणि असंखेञ्जगुणाणि । अपडिवादापडिवजट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि । सव्वाणि लट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । केत्तियमेत्तेण १ पडिवादपडिवजमाणट्ठाणमेतेणेति ।
$ ४४. एवमेदेसिं पमाणविसयमप्पाबहुअं काढूण संपहि एदेसिं चेव तिव्वमंददाए संजमविसेसमस्सियूण थोवबहुत्तपरूवणडुमेत्थ ताव बालजणाणुग्गहइमेसो दिडविणासो ०००००००००००००००००००० | अंतरं । संजदस्स पडिवदमाणस्स जहणलद्धिट्ठाणं सव्वत्थोवं । तं कस्स १ सव्वसंकिलिट्ठस्स मिच्छत्तं गच्छमाणस्स । तस्सेव उक्कस्स ० अणंतगुणं । तं कस्स १ तप्पा ओग्गसंकिलिट्ठस्स मिच्छत्तं
* उनसे लब्धिस्थान असंख्यातगुणे हैं ।
$ ४२. क्योंकि प्रतिपातस्थान, उत्पादकस्थान तथा इनसे असंख्यातगुणे अप्रतिपातअप्रतिपद्यमानस्थान इन सबको विषयकर इन लब्धिस्थानों की प्रवृत्ति देखी जाती है । इसलिए पूर्वोक्त स्थानसे ये असंख्यात गुणे हैं यह सिद्ध हुआ । गुणाकार असंख्यात लोकप्रमाण है ।
४३. अथवा इस अल्पबहुत्वको इस प्रकार करना चाहिए - प्रतिपातस्थान सबसे थोड़े हैं। उनसे प्रतिपद्यमानस्थान असंख्यातगुणे हैं। उनसे अप्रतिपात-अप्रतिपद्यमानस्थान असंख्यातगुणे हैं । उन सबसे सभी लब्धिस्थान विशेष अधिक हैं । कितने अधिक हैं ? प्रतिपातस्थान और प्रतिपद्यमानस्थानोंका जितना प्रमाण हैं उतने अधिक हैं ।
बिशेषार्थ – यहाँ पर ' अथवा ' कहकर पूर्वोक्त अल्पबहुत्वको ही प्रकारान्तरसे समझाया गया है। पूर्व में प्रतिपातस्थान, प्रतिपद्यमानस्थान और लब्धिस्थान ऐसा विभाग करके अल्पबहुत्व बतलाया गया है । यहाँ अप्रतिपात अप्रतिपद्यमानस्थानोंकी गणना पृथक्से नहीं की गई है । किन्तु ' अथवा ' कहकर जो अल्पबहुत्व बतलाया गया है उसमें प्रतिपातस्थान, प्रतिपद्यमानस्थान, अप्रतिपात - अप्रतिपद्यमानस्थान और लब्धिस्थान ऐसा विभाग करके अल्पबहुत्व बतलाया गया है। शेष कथन अल्पबहुत्वको ध्यान में लेनेसे ही समझमें आ जाता है ।
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$ ४४. इस प्रकार इनका प्रमाणविषयक अल्पबहुत्व करके अब इन्हीं की तीव्र - मन्दताद्वारा संयमविशेषका आलम्बन कर अल्पबहुत्वका कथन करनेके लिये यहाँ पर सर्वप्रथम बालजनोंके अनुग्रहके लिये यह संदृष्टि विन्यास है - ०० अन्तर । प्रतिपातमान संयतका जघन्य लब्धिस्थान सबसे स्तोक है । वह किसके होता है ? मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाले सर्व संक्लिष्ट संयतके होता है। उससे उसीके उत्कृष्ट स्थान अनन्तगुणा है । वह किसके होता है ? मिध्यात्वको प्राप्त होनेवाले तत्प्रायोग्य संक्लिष्ट संयत के