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जयधवलासहिदे फसायपाहुडे
[संजमलदी * एदेसि लट्ठिाणाणमप्पाबहुमं।
६३८. एत्थ दुविहमप्पाबहुअं लद्धिष्टाणसंखाविसयं तिव्वमंददाविसयं च । तत्थ तिव्व-मंददाए अप्पाबहुअमुवरि कस्सामो। एदेसिं लडिट्ठाणाणं ताव संखाविसयमप्पाबहुअं कस्सामो त्ति एदेण सुत्तेण पदण्णा कदा होइ ।
* तं जहा।
३९. सुगममेदं पुच्छावकं । * सव्वत्थोवाणि पडिवादट्ठाणाणि ।।
$ ४०. हेट्ठिमगुणहाणेसु पडिवदमाणस्स चरिमसमये असंखेजलोगमेत्ताणि ललिट्ठाणाणि घेत्तण एदाणि सव्वत्थोवाणि त्ति भणिदं होइ ।
* उप्पादयट्ठाणाणि' असंखेनगुणाणि ।
४१. उप्पादयट्ठाणाणि ति वा पडिवजमाणहाणाणि त्ति वा एयडो। तदो संजमं पडिवजमाणस्स पढमसमये समुवलद्धसव्वट्ठाणाणि घेत्तणेदाणि पुष्विन्लेहितो असंखेजगुणाणि जादाणि । गुणगारपमाणमेस्थासंखेजा लोगा।
* अब इन लब्धिस्थानोंका अन्पबहुत्व कहते हैं ।
३८. यहाँ पर अल्पबहुत्व दो प्रकारका है-लब्धिस्थानसंख्याविषयक और तीव्रमन्दताविषयक । उनमें से तीव्र-मन्दाविषयक अल्पबहुत्वका आगे कथन करेंगे। सर्व प्रथम इन लब्धिस्थानोंके संख्याविषयक अल्पबहुत्वका कथन करेंगे यह इस सूत्र द्वारा प्रतिज्ञा की ___* वह जैसे। ६ ३९. यह पृच्छावाक्य सुगम है। * प्रतिपातस्थान सबसे थोड़े हैं।
४०. नीचेके गुणस्थानोंमें गिरनेवाले संयतके अन्तिम समयमें प्राप्त होनेवाले असंख्यात लोकप्रमाण लब्धिस्थानोंको ग्रहण कर ये सबसे स्तोक हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* उनसे उत्पादकस्थान असंख्यातगुणे हैं । ___$ ४१. उत्पादकस्थान या प्रतिपद्यमानस्थान इन दोनोंका एक अर्थ है। अतः संयमको प्राप्त होनेवाले जीवके प्रथम समय में प्राप्त होनेवाले सब स्थानोंको ग्रहण कर ये स्थान पूर्वके स्थानोंसे असंख्यातगुणे हो जाते हैं । यहाँ पर गुणकारका प्रमाण असंख्यात लोक है । अर्थात् पूर्वमें कहे गये स्थानोंको असंख्यात लोकसे गुणित करने पर प्रतिपद्यमान स्थान उत्पन्न होते हैं।
१. ता० प्रती उ [प्पा ] दयट्ठाणाणि इति पाठः ।