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गाथा ११५]
संजमट्ठाणाणं लक्खणपरूवणा
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* उप्पादयहाणं णाम जहा-जम्हि हाणे संजमं पडिवजह तमुप्पादयहाणं णाम।
5 ३६. संयममुत्पादयतीत्युत्पादकः प्रतिपद्यमान इत्यर्थः । तस्य स्थानमुत्पादकस्थानं पडिवजमाणट्ठाणमिदि वुत्तं होइ । तं पुण मिच्छाइडिस्स वा असंजदसम्माइटिस्स वा संजदासंजदस्स वा संजमं गेण्हमाणस्स तप्पाओग्गविसुद्धस्स पढमसमये जहण्णयं होइ । सव्वविसुद्धस्स उक्कस्सं होइ । मज्झिमवियप्पाणि द्विदाणि वुण असंखेज्जलोगमेत्ताणि उप्पादट्ठाणाणि छवड्डीए समवट्ठिदाणि दट्ठव्वाणि ।
* सव्वाणि चेव चरित्तहाणाणि लद्धिट्ठाणाणि ।
5 ३७. एत्थ सव्वग्गहणेण पडिवाद-पडिवजमाण-अपडिवादापडिवजमाणढाणाणं सव्वेसिं पादेकमसंखेजलोयमेयभिण्णाणं गहणं कायव्वं । तदो ताणि सव्वाणि घेत्तण चरित्तलद्धिट्ठाणाणि होति ति सुत्तत्थसंगहो। अथवा सव्वाणि चेव लट्ठिोणाणि त्ति भणिदे उप्पादट्ठाणाणि पडिवादट्ठाणाणि च मोत्तण सेसाणि सव्याणि चेव संजमट्ठाणाणि अपडिवादापडिबजमाणविसयाणि लद्धिट्ठाणाणि ति अत्थो घेत्तव्यो। एवं पमाणाणुविद्धमेदेसिं द्वाणाणं परूवणं कादूण संपहि एदेसि परिमाणविसयणिण्णयसमुप्पायणट्ठमप्पाबहुअं भणइ
* उत्पादकस्थान यथा-जिस स्थान में संयम को प्राप्त होता है वह उत्पादकस्थान है।
$३६. संयमको उत्पन्न करता है, इसलिये उत्पादक संज्ञा है। उत्पादक अर्थात् प्रतिपद्यमान यह इसका तात्पर्य है। उसका स्थान उत्पादकस्थान अर्थात् प्रतिपद्यमानस्थान यह इसका भाव है। किन्तु वह, जो मिथ्यादृष्टि, असंयत सम्यग्दृष्टि और संयतासंयत जीव संयमको ग्रहण करता है, तत्प्रायोग्य विशुद्ध उसके संयमको ग्रहण करनेके प्रथम समयमें जघन्य होता है तथा सर्व विशुद्ध संयतके उत्कृष्ट होता है। मध्यम भेदरूप उत्पादकस्थान तो षट्स्थानपतित वृद्धिरूपसे अवस्थित असंख्यात लोकप्रमाण जानने चाहिए ।
* तथा सभी चारित्रस्थान लब्क्षिस्थान हैं।
$ ३७. यहाँ 'सर्व' पदका ग्रहण किया है सो उससे प्रत्येक असंख्यात लोकप्रमाण भेदोंसे जुदे ऐसे प्रतिपातस्थान, प्रतिपद्यमानस्थान और अप्रतिपात-अप्रतिपद्यमानस्थान इन सबका ग्रहण करना चाहिए । इसलिए उन सबको मिलाकर चारित्रलब्धिस्थान होते हैं यह सूत्रार्थसमुच्चय है । अथवा सभी लब्धिस्थान हैं ऐसा कहने पर उत्पादकस्थान और प्रतिपातस्थानों को छोड़कर शेष सभी अप्रतिपात-अप्रतिपद्यमानस्थानोंको विषय करनेवाले संयमस्थान लब्धिस्थान हैं ऐसा अर्थ ग्रहण करना चाहिए । इस प्रकार प्रमाण सहित इन स्थानोंका कथन करके अब इनके परिमाण विषयक निर्णयको उत्पन्न करनेके लिये अल्पबहुत्वको कहते हैं