________________
१७६
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ संजमलद्धी ३४. एत्तो उवरि जाणि संजमलद्धिट्ठाणाणि ताणि बत्तइम्सामो। ताणि च पडिवादट्ठाणादिमेएण तिविहाणि होति त्ति एदेण सुत्तेण परूवणा कया होइ । संपहि एदेसिं चेव सामण्णेण णिहिट्ठाणं तिविहाणं पि लद्धिट्ठाणाणं सरूवविसेसजाणावणडमुत्तरो सुत्तपबंधो____ * पडिवावहाणं णाम जहा–जम्हि द्वाणे मिच्छ वा असंजमसम्म वा संजमासंजमं वा गच्छद तं पडिवादट्ठाणं ।
३५. जम्हि द्वाणे द्विदो संजदो संकिलेसबहुलदाए ओढद्धो संतो मिच्छत्तं वा असंजमसम्मत्तं वा संजमासंजमं वा पडिवजदि तं पडिवादट्ठाणमिदि भण्णदे । कुत एवमिति चेत, प्रतिपतत्यस्मादधस्तनगुणेष्विति प्रतिपातशब्दस्य व्युत्पादनात् । ताणि च मिच्छत्तासंजमसम्मत्त-संजमासंजमपडिवादविसयत्तेण तिहा विहत्ताणि पडिवादद्वाणाणि पादेकमसंखेजलोगमेत्ताणि सग-सगजहण्णलद्धिट्ठाणादो जावुक्कस्सलद्धिट्ठाणं ति ताव छवड्डिकमेणावद्विदाणि त्ति घेत्तव्वाणि । तत्थ संजदस्स सव्वुक्कस्ससंकिलिट्ठस्स मिच्छत्तादिसु पडिवदमाणयस्स जहण्णाणि होति । तप्पाओग्गजहण्णसंकिलिद्वस्स उकस्साणि भवंति ।
३४. इससे आगे जो संयमलब्धिस्थान हैं उन्हें बतलाते हैं। वे प्रतिपात आदिके भेदसे तीन प्रकारके हैं इस प्रकार इस सूत्रद्वारा प्ररूपणा की गई है। अब सामान्यसे निर्दिष्ट इन्हीं तीनों ही प्रकारके स्थानोंके स्वरूपविशेषका ज्ञान करानेके लिये आगेका सूत्रप्रबन्ध आया है
* प्रतिपातस्थान यथा-जिस स्थानमें स्थित संयत मिथ्यात्वको अथवा असंयमसम्यक्त्वको अथवा संयमासंयमको प्राप्त होता है वह प्रतिपातस्थान है।
३५. जिस स्थानमें स्थित संयत जीव संक्लेशकी बहुलतावश गिरता हुआ मिथ्यात्वको अथवा असंयमसम्यक्त्वको अथवा संयमासंयमको प्राप्त होता है वह प्रतिपातस्थान कहा जाता है।
शंका-ऐसा किस कारणसे ?
समाधान-जिस स्थानसे नीचेके गुणस्थानोंमें गिरता है इस प्रकार प्रतिपात शब्दकी व्युत्पत्तिके कारण इसे प्रतिपातस्थान कहा है। और वे मिथ्यात्व प्रतिपात, असंयमसम्यक्त्व प्रतिपात और संयमासंयम प्रतिपातको विषय करनेवाले होनेसे तीन प्रकारके होकर प्रत्येक जघन्य लब्धिस्थानसे लेकर उत्कृष्ट लब्धिस्थान तक षट्स्थानपतित वृद्धिक्रमसे अवस्थित असंख्यात लोकप्रमाण हैं ऐसा ग्रहण करना चाहिये। उनमेंसे मिथ्यात्व आदिमें गिरनेवाले सर्वोत्कृष्ट संक्लेशयुक्त संयतके जघन्य प्रतिपातलब्धिस्थान होते हैं। तथा तत्प्रायोग्य जघन्य संक्लेश परिणामवालेके उत्कृष्ट प्रतिपातलब्धिस्थान होते हैं।