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गाथा ११५ ]
संजदट्ठाणभेदपरूवणा
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३३. संपहिएदेण सुत्तेण समप्पियट्ठस्स विवरणं कस्सामो । तं जहा - परूaire अस्थि जहणणयं लट्ठिाणमुक्कस्सयं च । सामित्तं - जहण्णलद्धिट्ठाणं कस्स १ संजदस्स सव्वसंकिलिट्ठस्स से काले मिच्छत्तं गच्छमाणस्स चरिमसमये भवदि । उक्कस्सयं लद्धिद्वाणं कस्स ? संजदस्स सत्याणे चेव सव्ववियुद्धस्स भवदि । एसा आदेसुक्कस्सिया । सव्वुक्कस्सिया पुण खीणोवसंतकसायाणं जहाक्खादसंजभलद्धी होइ । अप्पा बहुअं - सव्वत्थोवं जहण्णियं लट्ठिाणं । उक्कस्सयमणंतगुणं, जहण्णलट्ठिाणादो असंखेज लोगमेत्ताणि छट्टणाणि समुल्लंघियूणेदस्स समुप्पत्तीए । एवं ताव सामण्णेण जहण्णुक्कस्सलद्धिट्ठाणाणं सामित्तप्पाबहुअमुहेण विणिण्णयं काढूण संपहि सव्वेसिमेव संजमलद्धिङ्काणाणं पडिवादादिभेदेण तिहाविहत्ताणं परूवणा पमाणप्पाबहुअमिदि एदेहिं तीहिं अणिओगद्दारेहिं पमाणमुल्लंघियूण परूवणं कुणमाणो उवरिमं सुत्तपबंधमाह
* एतो जाणि द्वाणाणि ताणि तिविहाणि । तं जहा - पडिवादट्ठाणाणि उप्पादयद्वाणाणि लद्धिट्ठाणाणि
प्ररूपणापूर्वक स्वामित्व और अल्पबहुत्वका कथन करना चाहिए इसप्रकार इस सूत्र द्वारा अर्थी समर्पणा की गई है ।
विशेषार्थ - - यह चारित्रलब्धिनामक अर्थाधिकार है । वेदकप्रायोग्य मिथ्यादृष्टि जीव या असंयत वेदकसम्यग्दृष्टि जीव किस अवस्थामें किस प्रकार चारित्रलब्धिको प्राप्त करता है, इसलिए चारित्रलब्धि में यहाँ पर प्रधानतासे सामायिक-छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयमका ही ग्रहण होता है । यही कारण है कि प्रकृतमें तीव्रता - मन्दताका विचार इसी आधार से किया गया है ।
$ ३३. अब इस सूत्र द्वारा समर्पित अर्थका विवरण करेंगे । यथा- प्ररूपणाकी अपेक्षा विचार करनेपर जघन्य लब्धिस्थान है और उत्कृष्ट लब्धिस्थान है | स्वामित्व — जघन्य लब्धिस्थान किसके होता है ? जो सर्व संक्लिष्ट संयत जीव अनन्तर समय में मिथ्यात्वको प्राप्त करेगा उसके अन्तिम समय में होता है । उत्कृष्ट लब्धिस्थान किसके होता है ? स्वस्थानमें ही सर्वविशुद्ध संयत होता है । यह आदेशसे उत्कृष्ट संयमलब्धिस्थान है । परन्तु सर्वोत्कृष्ट क्षीणकषाय और उपशान्तकषाय जीवोंके यथाख्यातसंयतलब्धिस्वरूप होती है । अल्पबहुत्व - जघन्य लब्धिस्थान सबसे स्तोक है। उससे उत्कृष्ट लब्धिस्थान अनन्तगुणा है, क्योंकि जघन्य लब्धिस्थान से असंख्यात लोकप्रमाण षट्स्थानोंका उल्लंघन कर इसकी उत्पत्ति होती है । इस प्रकार सर्वप्रथम सामान्यसे जघन्य और उत्कृष्ट लब्धिस्थानोंका स्वामित्व और अल्पबहुत्वद्वारा निर्णय करके अब प्रतिपात आदिके भेदसे तीन प्रकारके सभी संग्रमलब्धिस्थानोंकी प्ररूपणा, प्रमाण और अल्पबहुत्व इन तीन अनुयोगद्वारोंके आलम्बनसे प्रमाणका उल्लंघन कर प्ररूपणा करते हुए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं—
* आगे जो स्थान हैं वे तीन प्रकारके हैं यह बतलाते हैं । यथा— प्रतिपात - स्थान, उत्पादकस्थान और लब्धिस्थान ३ |