________________
गाथा ११५ ]
संजदस्स अट्ठ आणिओगद्दाराणि
१७३
सेसतेरस मग्गणाहिं चैव अणुगमो कायव्वो, तिस्से आधेयत्तेण विवक्खियाए मग्गणासु पवेसासंभवादो ।
चाहिए। इतनी विशेषता है कि सर्वत्र संयमानुवादको छोड़ शेष तेरह मार्गणाओंके द्वारा ही अनुगम करना चाहिए, क्योंकि संयम मार्गणा प्रकृत में आधेय है इस विवक्षावश उसका प्रकृत में आधारभूत शेष मार्गणाओं में प्रवेश नहीं हो सकता ।
विशेषार्थ – संयममार्गणा एक मनुष्यगति में ही सम्भव है । उसमें भी छटे गुणस्थानसे संयममार्गणाका प्रारम्भ होता है इस तथ्यको ध्यानमें रख कर जो मार्गणाएँ छटे आदि गुणस्थानों में बन जाती हैं उनमें संयममार्गणाका होना सिद्ध होता है । उसमें भी संग्रमभाव के पाँच अवान्तर भेदोंमेंसे सामायिक-छेदोपस्थापनासंयम नौवें गुणस्थान तक, परिहारविशुद्धिसंयम छटे-सातवें दो गुणस्थानों में, सूक्ष्म साम्परायसंयम दसवें गुणस्थानमें और यथाख्यातचारित्र ग्यारहवें से लेकर चौदहवें गुणस्थान तक होता है। इस हिसाब से संयममार्गणा के अवान्तर भेद किस-किस मार्गणामें सम्भव हैं इसका विचार कर लेना चाहिये । इतनी विशेषता है कि मनुष्यनी, मन:पर्ययज्ञानी, उपशमसम्यग्दृष्टि, स्त्रीवेदी और नपुंसकवेदी जीवों में परिहारविशुद्धिसंयम नहीं होता ऐसा सहज ही वस्तुस्वभाव है । शेष कथन सुगम है । अब रहा द्रव्यप्रमाण आदिका विचार सो सामान्यसे संयत तथा सामायिक-छेदोपस्थापनासंयत जीव कोटिपृथक्त्वग्रमाण हैं । परिहारशुद्धिसंयत जीव सहस्रपृथक्त्व प्रमाण हैं । सूक्ष्मसाम्परायशुद्धिसंयत जीव शतपृथक्त्व प्रमाण हैं और यथाख्यातविहारशुद्धिसंयत जीव लक्षपृथक्त्व प्रमाण हैं । काल - एक जीव और नाना जीवोंकी अपेक्षा काल प्रकारका है। एक जीवकी अपेक्षा कालका विचार करने पर संयत तथा सामायिक छेदोपस्थापना संयत जीवका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल आठ वर्ष अन्तर्मुहूर्त कम एक पूर्वकोटि प्रमाण है । परिहारविशुद्धिसंयतका काल भी इसी प्रकार जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसका उत्कृष्ट काल अड़तीस वर्ष कम एक पूर्व कोटिप्रमाण है । उपशमश्रेणिकी अपेक्षा सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यातविहारशुद्धिसंयतका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। क्षपकश्रेणिकी अपेक्षा सूक्ष्मसाम्परायशुद्धिसंयतका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है तथा इसी अपेक्षासे यथाख्यातविहारशुद्धिसंयतका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल आठ वर्ष अन्तर्मुहूर्त कम एक पूर्वकोटिप्रमाण है । नाना जीवोंकी अपेक्षा संयत, सामायिक-छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयत, परिहारशुद्धिसंयत और यथाख्यातविहारशुद्धिसंयत इनका काल सर्वदा है। तथा सूक्ष्मासाम्परायशुद्धिसंयतोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अन्तरकाल - एक जीव और नाना जीवोंकी अपेक्षा यह दो प्रकारका है। उनमेंसे एक जीवकी अपेक्षा अन्तरकालका विचार करनेपर संयत, सामायिक - छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयत ओर परिहारविशुद्धिसंयतका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है । उपशमश्रेणिकी अपेक्षा सूक्ष्मसाम्परायशुद्धिसंयत और यथाख्यात विहारशुद्धिसंयतका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है । क्षपकश्रेणिकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । नाना जीवों की अपेक्षा संयत, सामायिक छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयत और यथाख्यातविहारशुद्धिसंयतोंका अन्तर काल नहीं है । सूक्ष्मसाम्परायशुद्धिसंयतोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह महीना है । क्षेत्र और स्पर्शन - सामायिक-छेदोप