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१६६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ संजमलद्धी १९. कुदो ? अलद्धपुव्बसंजमपडिलंभेण जणिदसंवेगस्स तहावड्डीए विप्पडिसेहाभावादो। ण एसो अणंतगुणविसोहिपडिलंभो णिप्फलो, पडिसमयमसंखेजगुणसेढीए कम्मक्खंधाणं णिजरणफलत्तादो। जाव एसो एयंताणुवड्डीए वड्ढदि ताव आउगवजाणं सव्वकम्माणं द्विदि-अणुभागखंडयसहस्साणमंतोमुहुत्तुक्कीरणद्धापडिबद्धाणं घादुवलंभादो च ।
* जाव चरित्तलद्धीए एगताणुवड्डीए वड्ढदि ताव अपुव्वकरणसण्णिदो भवदि।
२०. जाव एसो चरित्तलद्धीए अंतोमुहुत्तकालमेयतांणुवडिपरिणामेहि वड्डदि ताव अपुव्वकरणववएसारिहो चेव होदि । किं कारणं ? अपुव्वापुव्वेहिं परिणामहिं वड्डमाणस्स तदवत्थाए तव्ववएससिद्धीए बाहोणुवलंभादो । असंजदचरिमसमये चेय अपुव्वकरणे णिविदे पुणो कधमेदस्स तव्ववएसो त्ति णासंकणिज्जं, अपुव्वकरणो व्व अपुव्वकरणो त्ति तव्ववएससिद्धीए विरोहाभावादो। जहा अपुव्वकरणो ठिदिघादादिकजविसेसमपुव्यापुव्वेहिं परिणामेहिं करेदि तहा एसो वि करेदि त्ति भावत्थो । एदम्मि काले णिट्ठिदे तदो अधापवत्तसंजदो होइ । तत्थ णत्थि द्विदिघादो अणुभाग
5 १९. क्योंकि अलब्धपूर्व संयमके प्राप्त होनेसे उत्पन्न हुए संवेगसम्पन्न जीवके उस प्रकार वृद्धि होने में प्रतिषेध नहीं है और यह अनन्तगुणी विशुद्धिकी प्राप्ति निष्फल नहीं है, क्योंकि प्रति समय असंख्यातगुणी श्रेणिरूपसे कर्मस्कन्धोंकी निर्जरा होना उसका फल है। और जब तक यह जीव एकान्तानुवृद्धिसे वृद्धिको प्राप्त होता है तब तक आयकर्मको छोडकर शेष सब कर्मों के अन्तर्मुहूर्तप्रमाण उत्कीरणकालसे सम्बन्ध रखनेवाले हजारों स्थितिकाण्डकों और हजारों अनुभागकाण्डकोंका घात पाया जाता है ।
* तथा जब तक एकान्तानुवृद्धिरूप चारित्रलब्धिसे वृद्धिको प्राप्त होता है तब तक अपूर्वकरणसंज्ञावाला होता है।
२०. जब तक यह जीव एकान्तानुवृद्धिरूप परिणामोंके द्वारा अन्तर्मुहूर्त काल तक चारित्रलब्धिसे वृद्धिको प्राप्त होता है तब तक अपूर्वकरण संज्ञाके योग्य ही होता है, क्योंकि अपूर्व-अपूर्व परिणामोंके द्वारा वृद्धिको प्राप्त होनेवाले जीवके उस अवस्थामें उक्त संज्ञाकी सिद्धिमें कोई बाधा नहीं पाई जाती।
शंका-असंयतके अन्तिम समयमें ही अपूर्वकरणके समाप्त हो जाने पर पुनः इसके यह संज्ञा कैसे बन सकती है ?
समाधान-ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि अपूर्वकरणके समान यह अपूर्वकरण है, इसलिए इस संज्ञाकी सिद्धिमें कोई विरोध नहीं है। जिस प्रकार अपूर्वकरण जीव प्रति समय अपूर्व-अपूर्व परिणामोंके द्वारा स्थितिघात आदि कार्यविशेष करता है उसी प्रकार यह भी करता है यह उक्त कथनका भावार्थ है ।