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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
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पबंधमाढवेमाणो इदमाह -
* एदाओ सुत्तगाहाओ विहासिथूण तदो संजमं पडिवज्जमाणगस्स वक्कमविधिविहासा ।
[ संजमलद्धी
संग्रहः ।
$ १५. उपक्रमणमुपक्रमं प्रारंभ इत्यर्थः । उपक्रमस्य विधिरुपक्रमविधिः । उपक्रमविधेः परिभाषा उपक्रमविधिपरिभाषा । संयमग्रहणं प्रत्यभिमुखीभावमास्कंदतस्तदारंभात्प्रभृत्यापरिसमाप्तेर्विस्तर प्ररूपणेति यावत् । सेदानीं प्रस्तूयत इति सूत्रार्थ -
* तं जहा ।
$ १६. सुगमं ।
* जो संजमं पढमदाए पडिवज्जदि तस्स दुविहा अद्धा - अधापवत्तकरणद्धा च अपुव्वकरणद्धा च ।
$ १७. एत्थाणियट्टिअद्धाए सह तिणि अद्धाओ कथं ण परूविदाओ ! ण, वेदगपाओग्गमिच्छाइट्ठिस्स वेदगसम्माइट्ठिस्स वा पढमदाए संजमं पडिवजमाणसाणियट्टिकरणसंभवाभावादो । अणादियमिच्छाइट्ठिम्मि उवसमसम्मत्तेण सह संजमं तत्पश्चात् आगे प्ररूपणाप्रबन्धका आरम्भ करते हुए इस सूत्र को कहते हैं
* इन सूत्रगाथाओंका विशेष व्याख्यान करनेके बाद संयमको प्राप्त होनेवाले जीवके उपक्रमविधिका विशेष व्याख्यान प्रस्तुत है ।
$ १५. उपक्रम शब्दकी व्युत्पत्ति है— उपक्रमणं उपक्रमः । उपक्रम और प्रारम्भ इन शब्दोंका अर्थ एक है । उपक्रमकी विधि उपक्रमविधि कहलाती है । उपक्रमविधिकी परिभाषा उपक्रमविधिपरिभाषा है। संयमके ग्रहण के प्रति अर्थात् संयम के सन्मुख भावको प्राप्त होनेवाले जीवके संयम ग्रहण के प्रारम्भ समयसे लेकर समाप्त होने तक विस्तारसे की गई प्ररूपणा यह उक्त कथनका तात्पर्य है । वह इस समय प्रस्तुत है यह सूत्रार्थसमुच्चय है ।
* वह जैसे ।
$ १६. यह सूत्र सुगम 1
* जो संयमको प्रथमतः प्राप्त होता है उसके अधःप्रवृत्तकरण और अपूर्वकरण ये दो काल होते हैं ।
$ १७. शंका – यहाँ अनिवृत्तिकरण कालके साथ तीन काल क्यों नहीं कहे ?
समाधान — नहीं, क्योंकि वेदकप्रायोग्य मिथ्यादृष्टिके या वेदकसम्यग्दृष्टि के प्रथमतः संयमको ग्रहण करते हुए अनिवृत्तिकरणका होना सम्भव नहीं है ।