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गाथा ११५ ]
संजमासंजमलद्धी खाओवसमिया चेवे त्ति णिसो
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समत्थेयव्वं । तं जहा — ताणि तेरस कम्माणि देसघादिसरूवेणुदिण्णाणि संजमा - संजमगुणं देसघादिं करेंति, खओवसमियं करेंति त्ति वृत्तं होइ । कुदो १ देसघादिउदयजणि दक्खओवसमलद्वीए वि कज्जे कारणोवयारवसेण देसघादिववएसकरणादो । कुदो ण सिमेत्थ देसघादिउदयणियमो चे ? ण, संजमा संजमगुणुप्पत्तिअण्णहाणुववत्तीए तेसिमेत्थ देसघादिउदयणियमसिद्धीदो । तदो चदुसंजलण-णवणोकसायाणं सव्वघादिफद्दयोदय क्खएण तेसिं चेव देसघादिफद्दयोदयेण लद्धप्पसरूवत्तादो संजमा - संजमलद्धी खओवसमिया त्तिसिद्धं ।
* जइ पच्चक्खाणावरणीयं वेदेंतो सेसाणि चरित्तमोहणीयाणि ण वेदेज्ज तदो संजमासंजमलद्धी खइया होज !
$ ११०. एवं भणतस्सा हिप्पायो – अपच्चक्खाणावरणीयचउक्कस्स ताव णत्थि एत्थ उदयो त्ति वत्तव्वं । पञ्चक्खाणावरणीयाणि वि वेदिजमाणाणि संजमासंजमस्स ण किंचि उवघादमणुग्गहं वा करेंति त्ति । तदो पच्चक्खाणावरणीयचउक्कमेसो वेदेंतो सेसाणि चरित्तमोहणीयाणि चदुसंजलण-णवणोकसायसण्णिदाणि जर किह कमको ग्रहण कर संयमासंयमलब्धिके क्षयोपशमपनेका इसप्रकार समर्थन करना चाहिए । यथा— वे तेरह कर्म देशघातिस्वरूपसे उदीर्ण होकर संयमासंयमगुणको देशघाति करते हैंक्षायोपशमिक करते हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है, क्योंकि देशघातिस्वरूप उदयसे उत्पन्न हुई क्षयोपशमलब्धिको भी कार्य में कारणके उपचारवश देशघाति संज्ञा की है ।
शंका- परन्तु उनका यहाँ देशघाति उदय है यह नियम कैसे बनता है ?
समाधान — नहीं, क्योंकि संयमासंयमगुणकी अन्यथा उत्पत्ति नहीं बनती, इसलिए यहाँ उनके देशघातिरूप उदयका नियम सिद्ध होता है ।
इसलिये चार संज्वलन और नौ नोकषायोंके सर्वघाति स्पर्धकोंका उदयक्षय होने से और उन्हीं के देशघाति स्पर्धकों का उदय होनेसे संयमासंयमलब्धि अपने स्वरूपको प्राप्त करती है, इसलिए वह क्षायोपशमिक है यह सिद्ध हुआ ।
* यदि प्रत्याख्यानावरणीयका वेदन करता हुआ शेष चारित्रमोहनीयोंका वेदन न करे तब संयमासंयमलब्धि क्षायिक हो जाय ।
$ ११०. ऐसा कहनेवाले आचार्यका अभिप्राय है कि अप्रत्याख्यानावरणीयचतुष्कका तो यहाँ पर उदय नहीं है ऐसा कहना चाहिए । वेदनमें आते हुए प्रत्याख्यानावरणीय भी संयमासंयमका उपघात या अनुग्रह नहीं करते, इसलिये यह प्रत्याख्यानावरणीयचतुष्कका वेदन करता हुआ शेष चारित्रमोहसम्बन्धी चार संज्वलन और नौ नोकषायों को यदि कुछ
१. ता० प्रती खओवसामियं इति पाठः ।