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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ संजमासंजमलद्धी 5 १०७. कुदो ? तत्थ तेसिमुदयसत्तीए अच्चंतपरिक्खयादो। णोदइया संजमासंजमलद्धि त्ति सिद्धं, सगावरणकम्माणमुदयक्खएणुप्पण्णाए तिस्से तव्ववएसविरोहादो।
* पञ्चक्खाणावरणीया वि संजमासंजमस्स ण किंचि आवरेंति ।
१०८. जे च वेदिज्जंता पच्चक्खाणावरणीयकसाया ते वि संजमासंजमस्स ण किंचि उवघादं करेंति त्ति वुत्तं होइ, सयलसंजमपडिबंधीणं तेसिं देससंजमलद्धीए वावाराणभुवगमादो। तदो ण तण्णिबंधणो वि एदिस्से ओदइयववएसपडिलंभो त्ति सिद्धं ।
* सेसा चदुकसाया णवणोकसायवेदणीयाणि च उदिण्णाणि देसघादि करेंति संजमासंजमं ।
६१०९. एत्थ सेसचदुकसायग्गहणेण चदुसंजलणपयडीणं गहणं कायव्यं । अणंताणुबंधीणमिह ग्गहणं किण्ण पावदि त्ति चे ? ण, तेसिं हेट्ठा चेव विणट्ठोदयभावाणमेदम्मि विचारे अणहियारादो। तदो एत्थ विजमाणोदयाणि चदुकसायणवणोकसायवेदणीयाणि कम्माणि घेत्तण संजमासंजमलद्धीए खओवसमियत्तमित्थं
$१०७. क्योंकि वहाँ उनकी उदयशक्तिका अत्यन्त क्षय पाया जाता है। इसलिये संयमासंयमलब्धि औदर्यिक नहीं है यह सिद्ध हुआ, क्योंकि अपना-आवरण करनेवाले कोंके उदयक्षयसे उत्पन्न हुए उसकी औदायिक संज्ञा स्वीकार करनेमें विरोध है।
प्रत्याख्यानावरणीय कषाय भी संयमासंयमका कुछ आवरण नहीं करते ।
$१०८. और जो वहाँ वेदे जानेवाले प्रत्याख्यानावरणीय कषाय हैं वे भी संयमासंयमका कुछ उपघात नहीं करते यह उक्त कथनका तात्पर्य है, क्योंकि सकलसंयमका प्रतिबन्ध करनेवाले उनका देशसंयमलब्धिमें व्यापार नहीं स्वीकार किया गया है, इसलिए उनके निमित्तसे भी इसकी औदायिक संजाकी प्राप्ति नहीं है यह सिद्ध हुआ।
शेष चार कषाय और नौ नोकषायवेदनीय उदीर्ण होकर संयमासंयमको देशघाति करते हैं।
$ १०९. यहाँपर शेष चार कषायोंके ग्रहण करनेसे चार संज्वलन प्रकृतियोंका ग्रहण करना चाहिए। " शंका-यहाँ अनन्तानुबन्धियोंका ग्रहण क्यों प्राप्त नहीं होता ?
समाधान--नहीं, क्योंकि पहले ही उनके उदयका विनाश हो गया है, इसलिये इस विचारमें उनका अधिकार नहीं है।
इसलिये यहाँपर जिनका उदय विद्यमान है ऐसे चार कषाय और नौ नोकषायवेदनीय १. ता०प्रतौ करेदि इति पाठः ।