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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [संजमासंजमलद्धी ___* तिरिक्खजोणियास पडिवजमाणयस्स उक्कस्सयं लट्ठिाणमणंतगुणं ।
5 १०१. तं कस्स ? तिरिक्खासंजदसम्माइट्ठिस्स सव्वविसुद्धीए संजमासंजमं गेण्हमाणस्स पढमससए होइ । सेसं सुगमं ।
* मणुसस्स पडिवजमाणगस्स उक्कस्सयं लद्धिहाणमणंतगुणं ।
$ १०२. तं कस्स ? मणुस्सासंजदसम्माइट्ठिस्स सव्वविसुद्धस्स संजमासंजमं गेण्हमाणस्स पढमसमए होदि । सुगममण्णं ।
*मणुसस्स अपडिवजमाण-अपडिवदमाणयस्स जहण्णयं लट्ठिाणमणंतगुणं ।
5 १०३. तं कस्स ? मिच्छाइद्विस्स तप्पाओग्गविसुद्धस्स संजमासंजमं पडिवण्णम्स विदियसमए होइ । सेसं सुगमं ।
अतिरिक्खजोणियस्स अपडिवजमाण-अपडिवदमाणयस्स जहण्णयं लद्धिट्ठाणमणंतगुणं । .
* उससे प्रतिपद्यमान तिर्यञ्चयोनि जीवका उत्कृष्ट लब्धिस्थान अनन्तगुणा है।
६१०१. शंका—वह किसके होता है ?
समाधान-तिर्यच असंयत सम्यग्दृष्टिके सर्व विशुद्धिसे संयमासंजमको ग्रहण करनेके प्रथम समयमें होता है । शेष कथन सुगम है।
* उससे प्रतिपद्यमान मनुष्यका उत्कृष्ट लब्धिस्थान अनन्तगुणा है । $१०२. शंका-वह किसके होता है ?
समाधान-सर्व विशुद्ध मनुष्य असंयत सम्यग्दृष्टिके संयमासंयमको ग्रहण करनेके प्रथम समय में होता है । अन्य कथन सुगम है। ____ * उससे अप्रतिपद्यमान-अप्रतिपतमान मनुष्यका जघन्य लब्धिस्थान अनन्तगुणा है।
5 १०३. शंका-वह किसके होता है ?
समाधान-मिथ्यात्वसे संयमासंयमको प्राप्त हुए तत्प्रायोग्य विशुद्ध मनुष्यके दूसरे समयमें होता है। शेष कथन सुगम है।
. * उससे अप्रतिपद्यमान-अप्रतिपतमान तिर्यश्चयोनि जीवका जघन्य लब्धिस्थान अनन्तगुणा है।