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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [संजमासंजमलद्धी संकिलिट्ठस्स मिच्छत्तं गच्छमाणस्स चरिमसमये समुवलद्धसरूवत्तादो।
* मणुसस्स पडिवदमाणयस्स जहण्णय लद्धिट्ठाणं तत्तियं चेव ।
$ ९५. सुगममेदं, ओघजहण्णलट्ठिाणादो मणुससंजदासंजदजहण्णपडिवादट्ठाणस्स मेदाभावमस्सियूण पयट्टत्तादो ।
____ * तिरिक्खजोणियस्स पडिवदमाणयस्स जहण्णयं लद्धिट्ठाणमणंतगुणं।
5 ९६. कुदो ? पुब्विल्लादो असंखेज्जलोगमेत्तछट्ठाणाणि उवरि गंतूणेदस्स समुप्पत्तिदंसणादो।
* तिरिक्खजोणियस्स पडिवदमाणयस्स उक्कस्सयं लद्धिट्ठाणमणंतगुणं ।
$९७. एदं तप्पाओग्गसंकिलेसेणासंजमं गच्छमाणस्स चरिमसमए घेत्तव्वं, वेदगसम्मत्ताणुविद्धमसजमं गच्छमाणस्स होइ ति भावत्थो। णेदस्स पुग्विल्लादो अणंतगुणत्तमसिद्धं, तत्तो असंखेज्जलोगमेत्तछट्ठाणाणि समुल्लंघियूण समुप्पण्णस्सेदस्स अणंतगुणत्तसिद्धीए णिव्वाहमुवलंभादो । ___ * मणुससंजदासंजदस्स पडिवदमाणगस्स उक्कस्सयं लद्धिट्ठाणमणंतगुणं । सबसे अधिक संक्लेश परिणामवाले संयतासंयतके अन्तिम समयमें उसकी उपलब्धि होती है।
* गिरनेवाले मनुष्यका जघन्य लब्धिस्थान उतना ही है ।
$ ९५. यह सूत्र सुगम है, क्योंकि ओघ जघन्य लब्धिस्थानसे मनुष्य संयतासंयतके जघन्य प्रतिपातस्थानमें भेदपनेका आश्रय कर यह सूत्र प्रवृत्त हुआ है ।
* उससे गिरनेवाले तियंचयोनि जीवका जघन्य लब्धिस्थान अनन्तगुणा है।
६९६. क्योंकि पूर्वके लब्धिस्थानसे असंख्यात लोकप्रमाण षट्धान ऊपर जाकर इसकी उत्पत्ति देखी जाती है।
* उससे गिरनेवाले तिर्यचयोनि जीवका उत्कृष्ट लब्धिस्थान अनन्तगुणा है । . ९७. तत्प्रायोग्य संक्लेशसे असंयमको प्राप्त होनेवाले जीवके अन्तिम समय इसे ग्रहण करना चाहिये । वेदकसम्यक्त्वसे युक्त असंयमको प्राप्त होनेबाले जीवके यह होता है यह उक्त कथनका भावार्थ है । पहलेके लब्धिस्थानसे इसका अनन्तगुणापना असिद्ध नहीं है, क्योंकि असंख्यात लोकप्रमाण षस्थानोंको उल्लंघनकर उत्पन्न हुए इसकी अनन्तगुणपनेकी सिद्धि विना किसी बाधाके पाई जाती है।
* उससे गिरनेवाले मनुष्य संयतासंयतका उत्कृष्ट लब्धिस्थान अनन्तगुणा है ।