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गाथा ११५ ]
संजदासंजदे पदविसेसाणमप्पा बहुअपरूवणा
* अप्पाबहुत्रं ।
$ ७८. सुगमं ।
* तं जहा ।
$ ७९ पुच्छावक मेदं पि सुगमं ।
* जहण्णिया संजमा संजमलद्धी थोवा |
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८०. कुदो १ मिच्छत्तपडिवादाहिमुहस्स चरिमसमए तप्पाओग्गुक्कस्ससंकिलेसेण पडिलद्धजहण्णभावत्तादो ।
* उक्कस्सिया संजमासंजमलद्धी अनंतगुणा ।
$ ८१ सव्चविसुद्धस्स संजमा हिमुहस्स चरिमसमयउक्कस्सविसोहीए पडिलद्धतभावत्तदो । गुणगारो पुण सव्वजीवेहिंतो अनंतगुणो, पुव्विल्लजहण्णलद्धिद्वाणादो असंखेज लोगमेत्तछट्टाणाणि समुल्लंघियूण एदिस्से समुप्पत्तिदंसणादो । एवं ताव जहण्णुक्कस्ससंजमासंजमलद्वीणं सामित्तप्पा बहुअमुहेण विणिण्णयं काढूण संपहि अजहण्णाणुक्कस्सत व्वियप्पाणमसंखेज्जलोगमेत्ताणं परूवणट्टमुत्तरं सुत्तपबंधमाढवे - * एत्तो संजदासंजदस्स लद्धिट्ठाणाणि वत्तइस्सामो ।
* अब अल्पबहुत्वका अधिकार है ।
$ ७८. यह सूत्र सुगम है ।
* वह जैसे ।
$ ७९. यह पृच्छावाक्य भी सुगम है ।
* जघन्य संयमासंयमलब्धि सबसे स्तोक है ।
८०. क्योंकि मिथ्यात्व में गिरनेके सन्मुख हुए संयतासंयतके अन्तिम समयमें तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट संक्लेशके कारण यह जघन्यपनेको प्राप्त हुई है ।
* उससे उत्कृष्ट संयमासंयमलब्धि अनन्तगुणी है ।
$ ८१. संयमके अभिमुख हुए सर्वविशुद्ध संयतासंयतके अन्तिम समयमें जो उत्कृष्ट विशुद्धि होती है उसमें उत्कृष्टपना पाया जाता है । परन्तु गुणकार अनन्तगुणा है, क्योंकि पूर्वके जघन्य लब्धिस्थानसे असंख्यात लोकप्रमाण छह स्थानोंको उल्लंघन कर इसकी उत्पत्ति देखी जाती है । इसप्रकार सर्वप्रथम जघन्य और उत्कृष्ट संयमासंयमलब्धियोंका स्वामित्व और अल्पबहुत्व द्वारा निर्णय करके अब असंख्यात लोकप्रमाण अजघन्यानुकृष्ट संयमासंयमसम्बन्धी विकल्पोंका कथन करनेके लिये आगेके सूत्रप्रबन्धका आरम्भ करते हैं
* अव इससे आगे संयतासंयत के लब्धिस्थान बतलावेंगे ।