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गाथा ११५] संजदासंजदस्स अट्ठअणियोगद्दाराणि
१३७ * उक्कस्सयं हिदिसंतकम्मं संखेजगुणं ।
5६९. अपुब्धकरणपढमसमयविसये घादेण विणा अंतोकोडाकोडिमेत्तुक्कस्सट्ठिदिसंतकम्मस्स गहणादो १८ । एवं ताव पदपरिवूरणबीजपदाबलंबणेणेदमप्पाबहुअं परूविय पुणो संजदासंजदविसयमेव परूवणंतरमाढवेइ-- __* संजदासंजदाणमट्ठ अणियोगद्दाराणि । तं जहा–संतपरूवणा दव्वपमाणं खेत्तं फोसणं कालो अंतरं भागाभागो अप्पाबहुभं च ।
७०. संजदासंजदाणं परूवणट्ठदाए एदाणि अट्ठ अणिओगद्दाराणि णादव्वाणि भवंति, अण्णहा तविसयविसेसणिण्णयाणुप्पत्तीदो त्ति भणिदं होइ । गाहासुत्तणिबंधेण विणा कधमेदेसिमेत्थ परूवणा ति णासंकणिज्जं, गहासुत्तस्स सूचणामेत्तवावदस्स संजदासंजदविसयासेसपरूवणाए उवलक्खणभावेण पवुत्तिअब्भुवगमादो । एदेसिं च विहासा सुगमत्ताहिप्पारण चुण्णिसुत्ते ण पवंचिदा। तदो एत्थ जीवट्ठाणभंगाणुसारेण अट्ठण्हमणिओगद्दाराणं परूवणा जाणिय कायव्वा ।
* उससे उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्म संख्यातगुणा है ।
$ ६९. क्योंकि अपूर्वकरणके प्रथम समयमें घातके विना प्राप्त अन्तःकोडाकोड़ीप्रमाण उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्मका यहाँ ग्रहण किया है १८ । इस प्रकार सर्वप्रथम पदपूर्तिरूप बीजपदोंके अवलम्बनसे इस अल्पबहुत्वका कथन कर पुनः संयतासंयतविषयक ही दूसरी प्ररूपणाका आरम्भ करते हैं--
* संयतासंयतविषयक आठ अनुयोगद्वार हैं ज्ञातव्य । यथा-सत्प्ररूपणा, द्रव्यप्रमाण, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भागाभाग और अल्पबहुत्व ।
$ ७०. संयतासंयतोंकी प्ररूपणारूप प्रयोजन होने पर ये आठ अनुयोगद्वार ज्ञातव्य हैं, अन्यथा तद्विषयक विशेष निर्णय नहीं हो सकता यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
शंका-गाथासूत्रमें ये आठ अनुयोगद्वार निबद्ध नहीं हैं, फिर उसके बिना उनको यहाँ प्ररूपणा कैसे की जाती है ?
समाधान-ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि सूचनामात्रमें व्यापार करनेवाले गाथासूत्रकी संयतासंयतविषयक अशेष प्ररूपणामें उपलक्षणरूपसे प्रवृत्ति स्वीकार की गई है। किन्तु इनका विशेष व्याख्यान सुगम है, इस अभिप्रायसे चूर्णिसूत्र में इसका विवेचन नहीं किया, इसलिये वहाँ पर जीवस्थानमें की गई प्ररूपणाके अनुसार आठ अनुयोगद्वारोंकी प्ररूपणा जानकर करनी चाहिए।
विशेषार्थ—यहाँ संयतासंयत जीवोंसम्बन्धी उक्त आठ अनुयोगद्वारोंका अवलम्बन लेकर कथन करते हैं । यथा-सत्प्ररूपणा-ओघसे संयतासंयत जीव हैं। आदेशसे तिर्यञ्चगति और मनुष्यगतिमें संयतासंयत जीव हैं। संख्या-ओघसे संयतासंयत जीव पल्योपमके असंख्यातवें