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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ संजमासंजमलद्वी
७१. एवमेदे अट्ठ अणि ओगद्दारेसु विहासिय समत्तेसु पुणो वि संजमासंजमलद्धिविसयं परूवणंतरं वत्तइस्लामो त्ति जाणावणट्ठमुत्तरमुत्तारंभो—
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* एदेसु अणिओगद्दारेसु समत्तेसु तिव्वमंदाए सामित्तमप्पाबहुअं च कायव्वं ।
७२. अट्ठहिं अणियोगद्दारेहिं संजदासंजदाणं परूवणाए समत्ताए किम -
भागप्रमाण हैं । आदेश से तिर्यञ्चगति में संयतासंयत जीव पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं और मनुष्यगति में संयतासंयत जीव संख्यात हैं । क्षेत्र - ओघसे स्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक और मारणान्तिक पदकी अपेक्षा संयतासंयत जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है । इसीप्रकार आदेशसे तिर्यञ्चगति और मनुष्यगति में भी यथासम्भव पदोंकी अपेक्षा क्षेत्र जानना चाहिए। स्पर्शन- ओघसे संयतासंयत जीवोंने स्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिकपदोंकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मारणान्तिक पदकी अपेक्षा त्रसनालीके चौदह भार्गो में से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आदेशसे तिर्यञ्चगतिमें इसी प्रकार जानना चाहिए । मनुष्यगतिमें संयतासंयतोंने सम्भव सब पढ़ोंकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। काल - एक जीव और नाना जीवोंकी अपेक्षा काल दो प्रकारका है । एक जीवकी अपेक्षा ओघसे कालका विचार करने पर जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त पृथक्त्व कम एक पूर्वकोटिवर्ष प्रमाण है । आदेशसे तिर्यञ्चगति में एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट काल इसी प्रकार जानना चाहिए । मनुष्यगति में एक जीवको अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण ही है । मात्र उत्कृष्ट काल आठ वर्ष अन्तर्मुहूर्त कम एक पूर्वकोटि वर्ष प्रमाण है । ओघसे और आदेश से दोनों गतियों में नाना जीवोंकी अपेक्षा काल सर्वदा है । अन्तर - ओघसे एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम अर्धपुद्गल परिवर्तनप्रमाण है । इसी प्रकार आदेशसे दोनों गतियोंकी अपेक्षा यथासम्भव अन्तरकाल जानना चाहिए। नाना जीवोंको अपेक्षा ओघसे और आदेशसे दोनों गतियोंमें अन्तरकाल नहीं है । भागाभाग - ओघसे संयतासंयत एक पद है, इसलिए भागाभाग नहीं है । परस्थानकी अपेक्षा संयतासंयत जीव सब संसारी जीवोंके अनन्तवें भागप्रमाण हैं । आदेशसे तिर्यञ्चगति और मनुष्यगति में इसी प्रकार जान लेना चाहिए । अल्पबहुत्व - ओघसे संयतासंयत एक पद है, इसलिए स्वस्थानकी अपेक्षा अल्पबहुत्व नहीं है । आदेशसे मनुष्यगति में संयतासंयत जीव सबसे थोड़े हैं। उनसे तिर्यगति में संयतासंयत जीव असंख्यातगुणे हैं ।
७१. इस प्रकार इन आठ अनुयोगद्वारोंका व्याख्यान समाप्त होने पर फिर भी संयुमासंयमलब्धिविषयक दूसरी प्ररूपणाको बतलावेंगे इस बातका ज्ञान करानेके लिये आगे के - सूत्रका आरम्भ करते हैं
* इन अनुयोगद्वारोंके समाप्त होने पर तीव्र - मन्दताविषयक स्वामित्व और अल्पबहुत्व करना चाहिए ।
$ ७२. शंका--आठ अनुयोगद्वारोंके आलम्बनसे संयतासंयतोंकी प्ररूपणा के समाप्त