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संजदासंजदे पदविसेसाणमप्पाबहुअपरूवणा
गाथा ११५ ]
तव्ववएसपडिलंभे विरोहाभावादो ।
* तं जहा ।
$ ५१. सुगममेदं पुच्छावक्कं ।
* सव्वत्थोवा जहण्णिया अणुभागखंडयउक्कीरणद्धा ।
९ ५२. एसा एयंता वड्ढिकाल चरिमाणुभागखंडयउकीरणद्धा सव्वजहण्णभावेण गहेयव्त्रा १ ।
* उक्कस्सिया अणुभागखंडयउक्कीरणद्धा विसेसाहिया ।
$ ५३. अनुव्यकरणपढमाणुभागखंडयविसये एसा गहेयव्त्रा २ ।
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* जहण्णिया ट्ठिदिखंडयउक्कीरणद्धा जहण्णिया ट्ठिदिबंधगद्धा च दो वि तुलाओ संखेज्जगुणाओ ।
$ ५४. एदाओ एयंताणुवड्ढिकाल चरिमावत्थाए गहेयव्वाओ ३ ।
* उक्कस्सियाओ विसेसाहियाओ ।
$ ५५. कुदो ? अपुव्वकरण पढमट्ठिदिखंडय तब्बंध गद्वाणमिहावलंवियत्तादो ४ ।
क्योंकि देशचारित्रलब्धिकी उस संज्ञाके प्राप्त होने में विरोधका अभाव है । * वह जैसे ।
$ ५१. यह पृच्छावाक्य सुगम है ।
* जघन्य अनुभागकाण्डकका उत्कीरण काल सबसे स्तोक है ।
५२. एकान्तानुवृद्धि कालके भीतर जो अन्तिम अनुभागकाण्डकका उत्कीरणकाल है उसे यहाँ सबसे जघन्यरूपसे ग्रहण करना चाहिए १ ।
* उससे उत्कृष्ट अनुभागकाण्डकका उत्कीरणकाल विशेष अधिक है ।
$ ५३. अपूर्वकरणके प्रथम अनुभागकाण्डकविषयक यह उत्कीरणकाल ग्रहण करना चाहिए २ |
* उससे जघन्य स्थितकाण्डक - उत्कीरणकाल और जघन्य स्थितिबन्धकाल ये दोनों तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं ।
$ ५४. एकान्तानुवृद्धिकालकी अन्तिम अवस्थाके इन दोनोंको ग्रहण करना चाहिए ३ । * उनसे पूर्वोक्त उत्कृष्ट काल विशेष अधिक हैं ।
५५. क्योंकि अपूर्वकरणके प्रथम स्थितिकाण्डक और स्थितिबन्धके कालोंका यहाँ अवलम्बन लिया गया है ४ ।