________________
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [दसणमोहक्खवणा $ १४३. एदं पि पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागमेत्तं चेव, किंतु पुब्बिन्लादो संखेज्जगुणत्तमेदस्स सुत्तसिद्धमेव गहेयव्वं । गुणगारो च तप्पाओग्गसंखेज्जरूवमेत्तो २४ ।
* अपुव्वकरणे पढमहिदिखंडयं संरोजगुणं ।
$ १४४. किं कारणं? अपुव्वकरणपढमसमयाढत्तढिदिखंडयादो विसेसहीणकमेण संखेज्जसहस्समेत्तेसु द्विदिखंडएसु तप्पाओग्गसंखेज्जरूवमेत्तट्ठिदिखंडयगुणहाणिगम्भेसु गदेसु पुग्विलट्ठिदिखंडयस्स समुप्पण्णत्तादो। ण च तत्थ द्विदिखंडयंगुणहाणीणमत्थित्तमसिद्धं, पढमादो द्विदिखंडयादो अंतोअपुव्यकरणद्धाए संखेजगुणहीणं पि द्विदिखंडयमस्थि त्ति पुव्वं चुण्णिसुत्ते परूविदत्तादो। तदो सिद्धमेदस्स संखेजगुणत्तं २५।
* पलिदोवममेत्ते द्विदिसंतकम्मे जादे तदो पढमं ठिदिखंडयं संखजगुणं।
६१४५. किं कारणं ? अपुवकरणद्धाए अणियट्टिकरणद्धाए च जाव पलिदोवममेत्तं द्विदिसंतकम्मं ण चिट्ठइ ताव पुग्विल्लसव्वद्विदिखंडयाणि पलिदोवमस्स संखेजदिभागमेत्तायामाणि चेव, इदं पुण डिदिखंडयं पलिदोवमम्स संखेज्जे भागे घेत्तूण णिव्यरिदमदो पुविल्लादो एदं संखेजगुणमिदि २६ । स्थितिसत्कर्म शेष रहता है वह स्थितिकाण्डक संख्यातगुणा है।।
६ १४३. यह भी पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण ही है, किन्तु पूर्वके स्थितिकाण्डकसे इसे सूत्रसिद्ध संख्यातगुणा ही ग्रहण करना चाहिए। गुणकार तत्प्रायोग्य संख्यात अंकप्रमाण है २४ ।
* उससे अपूर्वकरणमें प्रथम स्थितिकाण्डक संख्यातगुणा है ।
$ १४४. क्योंकि अपूर्वकरणके प्रथम समयमें ग्रहण किये गये स्थितिकाण्डकसे विशेष हीनक्रमसे तत्प्रायोग्य संख्यात अंकप्रमाण स्थितिकाण्डक-गुणहानिगर्भ संख्यात हजार स्थितिकाण्डकोंके व्यतीत होनेपर पूर्वका स्थितिकाण्डक उत्पन्न हुआ है । और वहाँपर स्थितिकाण्डकगुणहानियोंका अस्तित्व असिद्ध भी नहीं है, क्योंकि अपूर्वकरणके भीतर प्रथम स्थितिकाण्डकसे संख्यातगुणा हीन भी स्थितिकाण्डक होता है यह पहले ही चूर्णिसूत्र में कह आये हैं, इसलिए यह संख्यातगुणा है यह सिद्ध हुआ २५ ।
* उससे पन्योपमप्रमाण स्थितिसत्कर्मके होनेपर उसके बाद होनेवाला प्रथम स्थितिकाण्डक संख्यातगुणा है।
$ १४५. क्योंकि जब तक पल्योपमप्रमाण स्थितिसत्कर्म नहीं प्राप्त होता तब तक अपूर्वकरणके कालमें और अनिवृत्तिकरणके कालमें प्राप्त होनेवाले पहले सभी स्थितिकाण्डक पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण आयामवाले ही होते हैं। परन्तु यह स्थितिकाण्डक पल्यो