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गाथा ११४ ]
एत्थतणपदविसेसप्पाबहुअपरूवणा * पलिदोवमट्ठिदिसंतकम्मं विसेसाहियं । $ १४६. केत्तियमेत्तेण ? हेट्ठिमावसेसिदसंखेजदिभागमेत्तेण २७ । * अपुवकरणे पढमस्स उक्कस्सगढिदिखंडयस्स विसेसो संखेजगुणो। $ १४७. कुदो ? सागरोपमपुधत्तपमाणत्तादो २८ ।
* दंसणमोहणीयस्स अणियटिपढमसमयं पविट्ठस्स द्विदिसंतकम्म संखेजगुणं २९।
5 १४८. कुदो ? सागरोवमसदसहस्सपुधत्तपमाणादो २९ ।
* दसणमोहणीयवजाणं कम्माणं जहण्णओ हिदिबंधो संखेजगुणो। पमके संख्यात बहुभागको ग्रहणकर निष्पन्न हुआ है, अतः पूर्वके स्थितिकाण्डकसे यह संख्यातगुणा है २६ ।
* उससे पन्योपमप्रमाण स्थितिसत्कर्म विशेष अधिक है । $ १४६. शंका-कितना अधिक है ? समाधान-अधस्तन शेष संख्यातवाँ भाग अधिक है २७ ।
विशेषार्थ-एक पल्योपमप्रमाण स्थितिसत्कर्मके शेष रहनेपर प्रथम स्थितिकाण्डक पल्योपमके संख्यात बहुभागप्रमाण होता है । उसमें शेष एक भागके मिलानेपर पल्योपमप्रमाण स्थितिसत्कर्म प्राप्त होता है यह उक्त चूर्णिसूत्रका तात्पर्य है।
* उससे अपूर्वकरणमें प्राप्त प्रथम उत्कृष्ट स्थितिकाण्डकका विशेष संख्यातगुणा है।
$ १४७. क्योंकि वह सागरोपमपृथक्त्वप्रमाण है २८ ।
विशेषार्थ-अपूर्वकरणमें सबसे जघन्य प्रथम स्थितिकाण्डक पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण होता है और उत्कृष्ट स्थितिकाण्डक सागरोपमपृथक्त्वप्रमाण होता है । यही कारण है कि यहाँ इन दोनों स्थितिकाण्डकोंका अन्तर सागरोपमपृथक्त्वप्रमाण बतलाया गया है।
* उससे अनिवृत्तिकरणके प्रथम समयमें प्रवृष्ट हुए जीवके दर्शनमोहनीयका स्थितिसत्कर्म संख्यातगुणा है।
$ १४८. क्योंकि वह सागरोपम शतसहस्रपृथक्त्वप्रमाण है २९ ।
* उससे दर्शनमोहनीयके सिवाय शेष कर्मोंका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है।